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समारोह के कारण राजा को अभिमान आया और अपने आपकी मन ही में प्रशंसा करने लगे, तब अवधिज्ञान द्वारा इन्द्र की जानकारी होने से हाथियों का ऐसा अनुपम दृश्य बताया कि देखते ही राजा का अभिमान विलय हो गया, और वैराग्य भावना वृद्धि पाने से तत्काल भगवन्त के पास दीक्षा ग्रहण की, दीक्षित होने के बाद इन्द्र महाराज ने वन्दन किया और शुद्ध चारित्र पाल मोक्ष पाये जिसका वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठारहवें उद्देश्य में है।
(८) महाराजा चंड प्रद्योत आप अयवन्ती (उज्जैन) नगरी के राजवी थे, आपकी पट्टरानी शिवादेवी जैन धर्मानुयायी थी जिसका जीवन चरित्र, सुवर्णगुलिका, संग्राम, दीक्षा, और सद्गति पाने का वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के अठ्ठारहवें उद्देश्य में है।
(६) महाराजा दधिवाहन, आपकी राजधानी चम्पानगरी थी, आपकी पुत्री का नाम चन्दनबाला था जो भगवन्त महावीर के शासन में प्रथम साध्वी बनी जिसका विस्तरित वर्णन कल्प सूत्र में प्रतिपादित है।
(१०) महाराजा युगबाहु, आपकी राजधानी सुदर्शन नगरी थी, आपने व पट्टरानी और पुत्र ने दीक्षा ली जिसका वर्णन उत्तराध्ययन के दशवें उद्देश्य में प्रतिपादित है।
(११) महाराजा बलभद्र आप सुग्रीव नगर के राजा थे, आप जैनधर्मानुयायी थे, आपके एक पुत्र मृगांक कुमार ने दीक्षा अंगीकार को और सद्गति पाये जिसका वर्णन
उत्तराध्ययन सूत्र के तीसवें उद्देश्य में प्रतिपादित है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com