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(४) महाराजा उदयन आप सिन्धु सौवीर वीतभय पट्टन के राजवी थे, आप प्रभाविक बलवान नरेश थे जिससे आपकी प्राज्ञा दश राजवी मानते थे, दशपुर के इतिहास में आपका वर्णन है, और पर्युषण के अट्ठाई व्याख्यान में भी उल्लेख है,
आपकी पटरानी महाराजा चेटक की कुँवरी प्रभावती थी, जिनके आवास में भगवान महावीर की प्रतिमा स्थापित थी, आपने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण को और निरतिचार चारित्र पालकर परमपद पाये जिसका वर्णन भगवती सूत्र शतक तेरह में है।
(५) महाराजा अलख आप वाराणसी नगरी के राजवी थे, पाप देशना श्रवण कर प्रभावित हो, भगवान के कर कमलों से दीक्षित हो निरतिचार चारित्र पालन कर मोक्ष पाये जिनका वर्णन अंतगड दशा सूत्र में प्रतिपादित है।
(६) महाराजा सम्प्रति आपकी राजधानी कपिलपुर थी, आप एक दिन मृगया को सिधाये, संयोग से वन में एक मुनि को ध्यानस्थ अवस्था में देखा, मुनिजी ने ध्यान पूराकर उपदेश दिया और आप जैन भक्त बन गये, और भगवन्त परमात्मा के कर कमलों से दीक्षित हो शुद्ध चारित्र पालकर मोक्ष पाये जिसका वर्णन उत्तराध्यन सूत्र के अट्ठारहवें उद्देश में है।
(७) महाराजा दशार्णभद्र आप दशपुर नगर के राजवी थे, दशपुर के उद्यान में भगवन्त परमात्मा महावीर का पदार्पण हुना तब आप भक्ति से विशेष समारोह से दर्शनार्थ पधारे । उस समय के अन्य नरेशों की अपेक्षा यह प्रथम समारोह था, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com