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॥ साहासक कार्य-और-राजदत्त पारितोषिक ॥ . सदीक नामक मित्थ्याभिमानीको नमानेसे राजा वीरधवलने चरित्र नायक वस्तुपालको “सदिककुलसंहारी" और उसके मित्र भरुच बंदरके अधिपति शंखनरेशको खाधीन करनेसे "शंखमानविमर्दन" यह दो विरुद दिये थे। ___ नयचंद्रसूरिजी महाराजने उन्हे यह शिक्षा दीथी कि"बादलकी छायाकी तरह मनुष्यकी माया (संपत्ति) स्थिर नही रहती, इसवास्ते इससे लोकोपकारी काम करके अपने नामको अमर बनालेना, यह तुमारा परम कर्त्तव्य है। तुमारे इस दर्जे पहुंचने परभी तुमारे साधर्मी भाई भूखे मरें, यह
आंखोंसे देखा नहीं जासकता । अरे भाग्यवानो! विचारनेका विषय है कि कौआभी अपनी प्राप्तवस्तुको बाँटके खाताहै तो मनुष्यका तो फर्जही है। __ सूरिजीका यह उपदेश कैसा समयोचित था ? आजके धर्मोपदेशक महापुरुषोंका इस विषयमे दृष्टिपात होना कितने महत्त्वका है ? किसी कविने एक सूक्त कहकर इसबातका खूब समर्थन किया है । कवि कहता है"अगर बेहतरिये कौमका कुछ दिलमे है अरमान।
हो जाओ मेरे दोस्तो! तुम कौमपर कुबान ॥
सोते उठते बैठते तुम कौमकी सेवा करो। नाम रह जाएगा बाकी वक्त जाएगा गुजर ॥१॥"
इस गुरु महाराजके अकसीर उपदेशको सुनकर मंत्रिपुंगवोंने यह अभिग्रह धारण करलिया कि-"समानधर्मि श्रावक
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