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के माने हुए उद्योतनसूरि कोई कल्पित व्यक्ति ही हैं फिर उसका समय या वर्धमान को पट्टधर मानने में वे स्वतन्त्र हैं जैसे "गार का नगारा और घर के बजाने वाले ।"
अब रही उद्योतनसूरि द्वारा ८४ गच्छों की स्थापना कहने वालों की बात ।
अतः यह बात केवल मनःकल्पना का निर्जीव कलेवर ही है। जैन श्वेताम्बर समुदाय में चौरासी गच्छ होने का जन प्रवाद सुन कर खरतरों ने लिख मारा है कि उद्योतनसूरि ने ८४ मुनियों को गोबर के वासचूर्ण द्वारा ८४ आचार्य बनाये और उन ८४ आचार्यों के चौरासी गच्छ हुए, अतः चौरासी गच्छों के स्थापक उद्योतनसूरि हैं इत्यादि । जब कि खरतरों के उद्योतनसूरि ही एक काल्पनिक व्यक्ति हैं तो उनके द्वारा ८४ गच्छ स्थापना की बात तो स्वयं काल्पनिक सिद्ध हो सकती है फिर भी खरतरों के कथन को थोड़ी देर के लिये मान भी लिया जाय तो सब से पहला तो यह सवाल पैदा होता है कि उद्योतनसूरि के स्थापित किये ८४ गच्छ तथा वर्तमान पुस्तकों में लिखे हुए ८४ गच्छ एक ही थे या पृथक पृथक थे? यदि एक कहा जाय तो ८४ गच्छों का समय विक्रम के पूर्व चार शताब्दी से लगाकर विक्रम की चौदहवीं शताब्दी तक का है, क्योंकि उपकेशगच्छ, कोरंटगच्छ, निर्वृत्तिगच्छ, नागेन्द्रगच्छ, विद्याधरगच्छ, चान्द्रगच्छ, वायटगच्छ, संखेसरागच्छ, नाणावलगच्छ, कंदरसागच्छ, सांडेरागच्छ आदि बहुत से गच्छ तो उद्योतनसूरि के सैकड़ों वर्ष पूर्व के हैं तथा पुनमिया, साढ़पुनमिया, आगमिया, अंचलिया, तपागच्छ तथा खरतरादि बहुत से गच्छ उद्योतनसूरि के स्वर्गवास के बाद सैकड़ों वर्षों से उत्पन्न हुए हैं। अतः यह कहना मिथ्या है कि प्रचलित ८४ गच्छ के स्थापक उद्योतनसूरि थे।
दूसरा अगर उद्योतनसूरि के स्थापित ८४ गच्छ पूर्वोक्त गच्छों से पृथक हैं तो उनके अस्तित्व का प्रमाण बतलाना चाहिये कि कौन कौन आचार्यों से कौन कौन से गच्छ हुये और उन गच्छों की परम्परा कहां तक चली तथा उन गच्छ परम्परा वालों ने शासन के क्या क्या काम किये अर्थात कौन कौन से ग्रन्थ बनाये
और कितने कितने मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई ? जिन्हों के शिलालेखादि स्मृति चिह्न कहां कहां मिलते हैं ? इत्यादि विश्वसनीय प्रमाण देकर साबित करना चाहिये कि उद्योतनसूरि ने ८४ गच्छ की स्थापना की थी।
खरतरों ! आज जमाना बीसवीं शताब्दी का है। कुछ सोच समझ कर लिखा करो। यदि आपके पूवजों की उस समय भूल हो गई हो तथा गच्छ राग के लिए गलत बातें भी लिख दी हों तो उनका सुधार करना चाहिये न कि उन गलत बातों को सच्ची बनाने के लिये डबल झूठ का सहारा लेना चाहिये ।