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चलो यह तो हुई उद्योतनसूरि की बातें, अब आगे चलकर कोई दूसरी बात सुनाइये।
वर्धमानसूरि की बातें। खरतरों की पट्टावलियों में वर्धमानसूरि के विषय में भी वही गड़बड़ है कि जो उद्योतनसूरि के विषय में थी। कई खरतर लिखते हैं कि वर्धमानसूरि चैत्यवास को छोड़कर उद्योतनसूरि के पास आये। उद्योतनसूरि ने उसको योग्य समझ कर सूरि बनाया और उत्तराखंड में धर्मप्रचार करने के लिये भेज दिया, बाद में ८३ अन्य शिष्यों को आचार्य पद देकर उद्योतनसूरि स्वर्ग पधार गये अर्थात् उद्योतनसूरि के स्वर्गवास के समय वर्धमानसूरि हाजिर ही नहीं थे। तब दूसरी पट्टावली बताती है कि उद्योतनसूरि ने केवल एक वर्धमानसूरि को ही आचार्यपद दिया। बाद में वर्धमानसूरि ने आबू के विमलशाह के बनाये मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। तत्पश्चात् सरस्वती पाटण जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर को दीक्षा दी। जब कि कई खरतर आबू के मंदिरों की प्रतिष्ठा का समय वि. सं. १०८८ का भी कहते हैं। इससे पाया जाता है कि सं. १०८८ के बाद जिनेश्वर और बुद्धिसागर की दीक्षा हुई थी।
इन सबका सारांस यह है कि खरतरों की पट्टावलियाँ कल्पित हैं और वह भी एक पट्टावली दूसरी पट्टावली से विरुद्ध है, क्योंकि एक पट्टावली में लिखा है कि उद्योतनसूरि ने केवल एक वर्धमानसूरि को ही सूरि पद दिया। बाद वर्धमानसूरि ने आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई, तत्पश्चात् सरस्वती पाटण जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर को दीक्षा दी, बाद वर्धमानसूरि का स्वर्गवास हुआ।
तब दूसरी पट्टावली में वर्धमान को सूरिपद देकर उत्तराखंड में धर्मप्रचार निमित्त भेज दिये, बाद अन्य गच्छीय ८३ साधुओं को सूरि पद दिया। तत्पश्चात् उद्योतनसूरि का स्वर्गवास हुआ।
१. पृष्ठ १३७ का फूट नोट देखो।
पृष्ठ १३७ का फूट नोट देखो। ३. लुंकडीया वटवृक्षाधः स्थापितो वर्धमानसूरिः श्रीउद्योतनसूरिभिः । क्रमेणाथ श्रीवर्धमानसूरयो बहुपरिवारा जाताः ॥
विमलेन हटात् चिन्तितं सर्वोऽप्ययं गिरिर्मया स्वर्णमुद्रया गृहीष्यते । द्विजैरचिन्ति तीर्थमस्मदीयं सर्वं यास्यतीति विचिन्त्य स्तोकैव धरादत्ता तत्र महान् श्रीआदिनाथप्रासादः कारितः।
अथैकदा श्रीसूरयः सरस्वतीपत्तने जग्मुः... तदा जिनेश्वर बुद्धिसागरौ विप्रौ... दीक्षा गृहीता।
खरतर-पट्टावली, पृष्ठ ४४