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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र - २, 'अनुयोगद्वार'
सूत्र - ३९
ज्ञायकशरीर-द्रव्यश्रुत क्या है ? श्रुतपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला देखकर कोई कहे-अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से 'श्रुत' इस पद की गुरु से वाचना ली थी, प्रज्ञापित, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित, उपदर्शित किया था, उसका वह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक है । इसका दृष्टान्त ? यह मधु का घड़ा है, यह घी का घड़ा है । इसी प्रकार निर्जीव शरीर भूतकालीन श्रुतपर्याय का आधाररूप होने से ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत कहलाता है ।
सूत्र - ४०
भव्यशरीरद्रव्यश्रुत क्या है ? समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर-द्रव्यश्रुत है । इसका दृष्टान्त ? 'यह मधुपट है, यह घृतघट है' ऐसा कहा जाता है ।
सूत्र - ४१
ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत हैं । अथवा वह पाँच प्रकार का है- अंडज, बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज । अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं । बोंडज किसे कहते हैं ? कपास या रुई से बनाये गये सूत्र को कहते हैं । कीटजसूत्र किसे कहते हैं ? वह पाँच प्रकार का है- पट्ट, मलय, अशुक, चीनांशुक, कृमिराग । वालज सूत्र के पाँच प्रकार हैं-और्णिक, औष्ट्रिक, मृगलोमिक, कौतव, किट्टिस । वल्कज किसे कहते हैं ? सन आदि से निर्मित सूत्र को कहते हैं ।
सूत्र - ४२
भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है । यथा-आगमभावश्रुत और नोआगमभावश्रुत।
सूत्र - ४३
आगमभावश्रुत क्या है ? जो श्रुत का ज्ञाता होने के साथ उसके उपयोग से भी सहित हो, वह आगमभावश्रुत है ।
सूत्र - ४४
आगम की अपेक्षा भावश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है। लौकिक, लोकोत्तरिक ।
सूत्र ४५
लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, नाटक आदि अथवा बहत्तर कलायें और सांगोपांग चार वेद लौकिक नोआगमभावश्रुत हैं ।
सूत्र - ४६
लोकोत्तरिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करनेवाले, भूतभविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान दर्शन के धारक अरिहंत भगवंतो द्वारा प्रणीत आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदश, अन्तकृद्दश, अनुत्तरोपपातिकदश, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत, दृष्टिवाद रूप द्वादशांग, गणिपिटक लोकोत्तरिक नोआगम भावश्रुत हैं ।
दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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