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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' आगमभावावश्यक है। सूत्र-२५
नोआगमभावावश्यक किसे कहते हैं ? तीन प्रकार का है । लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक । सूत्र-२६
लौकिक भावावश्यक क्या है ? दिन के पूर्वार्ध में महाभारत का और उत्तरार्ध में रामायण का वाचन करने, श्रवण करने को लौकिक नोआगमभावावश्यक कहते हैं। सूत्र- २७
कुप्रावचनिक भावावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक यावत् पाषण्डस्थ यज्ञ, अंजलि, हवन, जाप, धूपप्रक्षेप या बैल जैसी ध्वनि, वंदना आदि भावावश्यक करते हैं, वह कुप्रावचनिक भावावश्यक है। सूत्र - २८
लोकोत्तरिक भावावश्यक क्या है ? दत्तचित्त और मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से सम्पन्न, यथाविध क्रिया को करने के लिए तत्पर अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक उसके अर्थ में उपयोगयुक्त होकर एवं उपयोगी करणों को नियोजित कर, उसकी भावना से भावित होकर जो ये श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविकायें अन्यत्र मन को संयोजित किये बिना उभयकाल आवश्यक करते हैं, वह लोकोत्तरिक भावावश्यक है। सूत्र- २९-३२
उस आवश्यक के नाना घोष और अनेक व्यंजन वाले एकार्थक अनेक नाम इस प्रकार हैं-आवश्यक, अवश्यकरणीय, ध्रवनिग्रह, विशोधि, अध्ययन-षट्कवर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग | श्रमणों और श्रावकों द्वारा दिन एवं रात्रि के अन्त में अवश्य करने योग्य होने के कारण इसका नाम आवश्यक है । यह आवश्यक का स्वरूप
सूत्र- ३३
श्रुत क्या है ? श्रुत चार प्रकार का है-नामश्रुत, स्थापनाश्रुत, द्रव्यश्रुत, भावश्रुत । सूत्र-३४
नामश्रुत क्या है ? जिस किसी जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, उभय का अथवा उभयों का 'श्रुत' ऐसा नाम रख लिया जाता है, वह नामश्रुत हैं । सूत्र - ३५
स्थापनाश्रुत क्या है ? काष्ठ यावत् कौड़ी आदि में यह श्रुत है, ऐसी जो स्थापना की जाती है, वह स्थापनाश्रुत है । नाम और स्थापना में क्या विशेषता है ? नाम यावत्कथित होता है, जबकि स्थापना इत्वरिक और यावत्कथित दोनों प्रकार की होती है। सूत्र-३६
द्रव्यश्रुत क्या है ? दो प्रकार का है । जैसे-आगमद्रव्यश्रुत, नोआगमद्रव्यश्रुत । सूत्र-३७
आगम की अपेक्षा द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? जिस साधु आदि ने श्रुत यह पद सीखा है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है यावत् जो ज्ञायक हैं वह अनुपयुक्त नहीं होता है आदि । यह आगम द्रव्यश्रुत का स्वरूप है सूत्र - ३८
__नोआगमद्रव्यश्रुत क्या है ? तीन प्रकार का है । ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत, भव्यशरीरद्रव्यश्रुत, ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्य-तिरिक्तद्रव्यश्रुत । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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