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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र -२, 'अनुयोगद्वार'
नो आगमद्रव्य अक्षीण के तीन प्रकार हैं। यथा- जायकशरीरद्रव्य-अक्षीण, भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण, ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण । अक्षीण पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि जैसा द्रव्य अध्ययन के संदर्भ में वर्णन है, वैसे यहाँ भी करना । समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्य शरीरद्रव्य-अक्षीण का वर्णन जानना । सर्वाकाश श्रेणि ज्ञायकशरीर भव्य शरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण रूप हैं ।
भाव अक्षीण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा-आगम से, नोआगम से ज्ञायक जो उपयोग से युक्त हो वह आगम की अपेक्षा भाव अक्षीण है। नो आगमभाव अक्षीण का क्या स्वरूप है ?
सूत्र - ३२८
जैसे दीपक दूसरे सैकड़ों दीपकों को प्रज्वलित करके भी प्रदीप्त रहता है, उसी प्रकार आचार्य स्वयं दीपक के समान देदीप्यमान है और दूसरों को देदीप्यमान करते हैं।
सूत्र - ३२९
इस प्रकार से नो आगमभाव अक्षीण का स्वरूप जानना चाहिए।
आय क्या है ? आय के चार प्रकार हैं । यथा - नाम-आय, स्थापना-आय, द्रव्य-आय, भाव-आय । नामआय और स्थापना-आय का 'वर्ण' पूर्ववत् जानना | द्रव्य आय के दो भेद हैं-आगम से, नोआगम से । जिसने आ यह पद सीख लिया है, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य हैं यावत् जितने उपयोग रहित हैं, उतने ही आगम से द्रव्य-आय हैं। यह आगम से द्रव्य आय का स्वरूप जानना । नोआगमद्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं । यथा-ज्ञायकशरीरद्रव्य-आय, भव्यशरीर द्रव्य-आय, ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-आय ।
जायकशरीरद्रव्य-आय किसे कहते हैं ? आय पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित त्यक्त आदि शरीर द्रव्याध्ययन की वक्तव्यता जैसा ही ज्ञायकशरीरनोआगमद्रव्य आय का स्वरूप जानना । समय पूर्ण होने पर योनि से निकलकर जो जन्म को प्राप्त हुआ आदि भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के वर्णन के समान भव्यशरीरद्रव्य आय का स्वरूप जानना । ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य आय के तीन प्रकार हैं। यथालौकिक, कुप्रवाचनिक, लोकोत्तर । लौकिकद्रव्य-आय के तीन प्रकार हैं। यथा- सचित्त, अचित्त और मिश्र ।
सचित्त लौकिक आय क्या है ? तीन प्रकार हैं। यथा द्विपद-आय, चतुष्पद-आय, अपद-आय इनमें से दास-दासियों की आय द्विपद-आय रूप है । अश्वों हाथियों की प्राप्ति चतुष्पद-आय रूप और आम, आमला के वृक्षों आदि की प्राप्ति अपद-आय रूप हैं। सोना-चाँदी, मणि-मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि की प्राप्ति अचित्त आय है। अलंकारादि से तथा वाद्यों से विभूषित दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र आय कहते हैं । कुप्रवाचनिक आय तीन प्रकार की है । यथा- सचित्त, अचित्त, मिश्र । इन तीनों का वर्णन लौकिकआय के अनुरूप जानना ।
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लोकोत्तरिक आय क्या है ? तीन प्रकार है। सचित्त, अचित्त और मिश्र शिष्य शिष्याओं की प्राप्ति सचित्त-लोकोत्तरिक-आय है । अचित्त पात्र, वस्त्र, पादप्रोंच्छन, आदि की प्राप्ति अचित्त लोकोत्तरिक आय हैं । भांडोपकरणादि सहित शिष्य शिष्याओं की प्राप्ति लाभ को मिश्र आय कहते हैं।
भाव-आय का क्या स्वरूप है ? दो प्रकार हैं । आगम से, नोआगम से । आयपद के ज्ञाता और साथ ही उसके उपयोग से युक्त जीव आगमभाव-आय हैं। नोआगमभाव-आय के दो प्रकार हैं, यथा- प्रशस्त और अप्रशस्त। प्रशस्त नोआगम भाव-आय के तीन प्रकार हैं। यथा-ज्ञान-आय, दर्शन-आय, चारित्र आय अप्रशस्तनो आगमभाव आय के चार प्रकार हैं। यथा-क्रोध-आय, मान-आय, माया आय और लोभ आय । यही अप्रशस्तभाव - आय
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क्षपणा क्या है ? चार प्रकार जानना । नामक्षपणा, स्थापनाक्षपणा, द्रव्यक्षपणा, भावक्षपणा । नाम और स्थापनाक्षपणा का वर्णन पूर्ववत् । द्रव्यक्षपणा दो प्रकार की है । आगम से और नोआगम से । जिसने 'क्षपणा' यह
दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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