________________
आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' जीवास्तिकाय, आत्मसमवतार की अपेक्षा निजस्वरूप में रहते हैं और तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्रव्यों में और आत्मभाव में भी रहते हैं । इनकी संग्रहणी गाथा इस प्रकार हैंसत्र-३२३
क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, मोहनीयकर्म, (कर्म) प्रकृति, भाव, जीव, जीवास्तिकाय और सर्वद्रव्य (आत्मसमवतार से अपने-अपने स्वरूप में और तदुभयसमवतार से पररूप और स्व-स्वरूप में भी रहते हैं ।) सूत्र-३२४
यही भावसमवतार है। सूत्र- ३२५
निक्षेप किसे कहते हैं ? निक्षेप तीन प्रकार हैं । यथा-ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, सूत्रालापकनिष्पन्न । ओघनिष्पन्ननिक्षेप के चार भेद हैं । उनके नाम हैं-अध्ययन, अक्षीण, आय, क्षपणा । अध्ययन के चार प्रकार हैं, यथा-नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य अध्ययन, भाव अध्ययन । नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववत् जानना।
द्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? द्रव्य-अध्ययन के दो प्रकार हैं, आगम से और नोआगम जिसने 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, स्थिर कर लिया है । जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने भी उपयोग से शून्य हैं, वे आगम से द्रव्य-अध्ययन हैं । नैगमनय जैसा ही व्यवहारनय का मत है, संग्रहनय के मत से एक या अनेक आत्माएँ एक आगम-द्रव्य अध्ययन हैं । इत्यादि समग्र वर्णन आगमद्रव्य-आवश्यक जैसा ही जानना। नोआगमद्रव्य-अध्ययन तीन प्रकार का है । ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन, भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन, ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अध्ययन । अध्ययन पद के अर्थाधिकार के ज्ञायक-के व्यपगतचैतन्य, च्युत, च्यावित त्यक्तदेह यावत् अहो इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने 'अध्ययन' इस पद का व्याख्यान किया था, यावत् उपदर्शित किया था, (वैसा यह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्य अध्ययन है।)
एतद्विषयक कोई दृष्टान्त है ? जैसे घड़े में से घी या मधु के निकाल लिये जाने के बाद भी कहा जाता हैयह घी का घड़ा था, यह मधुकुंभ था । जन्मकाल प्राप्त होने पर जो जीव योनिस्थान से बाहर निकला और इसी प्राप्त शरीरसमुदाय के द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार अध्ययन' इस पद को सीखेगा, लेकिन अभी-वर्तमान में नहीं सीख रहा है ऐसा उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्याध्ययन कहा जाता है । इसका कोई दृष्टान्त है ? जैसे किसी घड़े में अभी मधु या घी नहीं भरा गया है, तो भी उसको यह घृतकुंभ होगा, मधुकुंभ होगा कहना । पत्र या पुस्तक में लिखे हुए अध्ययन को ज्ञायकशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्याध्ययन कहते हैं।
__ भाव-अध्ययन क्या है ? दो प्रकार हैं-आगमभाव-अध्ययन, नोआगमभाव-अध्ययन । जो अध्ययन के अर्थ का ज्ञायक होने के साथ उसमें उपयोगयुक्त भी हो, उसे आगमभाव-अध्ययन कहते हैं । आयुष्मन् ! नोआगमभावअध्ययन का स्वरूप इस प्रकार हैसूत्र- ३२६
अध्यात्म में आने, उपार्जित कर्मों का क्षय करने और नवीन कर्मों का बंध नहीं होने देने का कारण होने से (मुमुक्षु अध्ययन की अभिलाषा करते हैं।) सूत्र- ३२७
यह नोआगमभाव-अध्ययन का स्वरूप है।
अक्षीण का क्या स्वरूप है ? अक्षीण के चार प्रकार हैं । यथा-नाम-अक्षीण, स्थापना-अक्षीण, द्रव्यअक्षीण और भाव-अक्षीण । नाम और स्थापना अक्षीण का स्वरूप पूर्ववत् जानना ।
द्रव्य-अक्षीण क्या है ? दो प्रकार हैं । यथा-आगम से, नोआगम से । जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन में कहा वैसा ही यहाँ समझना । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 63