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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' नाम को अविशेषित माना जाए तो पर्याप्त० और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक ये विशेषित नाम हैं । यदि परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक यह अविशेषित नाम है तो उरपरिसर्प० और भुजपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक नाम विशेषित नाम है। इसी प्रकार संमूर्छिम पर्याप्त और अपर्याप्त तथा गर्भव्युत्क्रान्तिक पर्याप्त, अपर्याप्त का कथन कर लेना ।
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो संमूर्छिम?० और गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम रूप हैं । यदि संमूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नाम को अविशेषित नाम माना जाए तो पर्याप्त और अपर्याप्त संमूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक रूप उसके भेद विशेषित नाम हैं। इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर में भी समझ लेना।
मनुष्य इस नाम को अविशेषित माना जाए तो संमूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य यह नाम विशेषित कहलायेंगे । संमूर्छिम मनुष्य को अविशेषित नाम मानने पर पर्याप्त० और अपर्याप्त संमूर्छिम मनुष्य यह दो नाम विशेषित नाम हैं। गर्भव्युत्क्रान्तिक में भी ईसी तरह समझ लेना ।
देव नाम को अविशेषित मानने पर उसके भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक यह देवनाम विशेषित कहलायेंगे । यदि भवनवासी नाम को अविशेषित माना जाए तो असुरकुमार, नागकुमार, यावत् स्तनितकुमार ये नाम विशेषित हैं। इन सब नामों में से भी प्रत्येक को यदि अविशेषित माना जाए तो उन सबके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद विशेषित नाम कहलायेंगे । वाणव्यंतर इस नाम को अविशेषित मानने पर पिशाच, भूत, यावत् गंधर्व, ये नाम विशेषित नाम हैं । इन सबमें से भी प्रत्येक को अविशेषित नाम माना जाए तो उनके पर्याप्त अपर्याप्त भेद विशेषित नाम कहलायेंगे । यदि ज्योतिष्क नाम को अविशेषित माना जाए तो चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप नाम विशेषित कहे जायेंगे । इनमें से भी प्रत्येक को अविशेषित नाम माना जाए तो उनके पर्याप्त, अपर्याप्त भेद विशेषित नाम हैं।
यदि वैमानिक देवपद को अविशेषित नाम माना जाए तो उसके कल्पोपपन्न और कल्पातीत यह दो प्रकार विशेषित नाम हैं । कल्पोपपन्न को अविशेषित नाम मानने पर सौधर्म, ईशान यावत् अच्युत विमानवासी देव नाम विशेषित नाम रूप हैं । यदि इनमें से प्रत्येक को अविशेषित नाम माना जाए तो उनके पर्याप्त, अपर्याप्त रूप भेद विशेषित नाम कहलायेंगे । यदि कल्पातीत को अविशेषित नाम माना जाए तो ग्रैवेयकवासी और अनुत्तरोपपातिक देव विशेषित नाम हो जाएँगे । ग्रैवेयकवासी को अविशेषित नाम मानने पर अधस्तन०, मध्यम०, उपरितनग्रैवेयक ये नाम विशेषित नाम रूप होंगे । जब अधस्तनौवेयक को अविशेषित नाम माना जाएगा तब अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक, यावत् अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक नाम विशेषित नाम कहलायेंगे | अविशेषित नाम के रूप में मध्यमग्रैवेयक और उपरिम ग्रैवेयक को भी ईसी तरह जानना । इन सबको भी अविशेषित नाम माना जाए तो उनके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम कहलायेंगे ।यदि अनुत्तरोपपातिक देव नाम को अविशेषित नाम कहा जाए तो विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध-विमानदेव विशेषित नाम कहलायेंगे । इन सबको भी अविशेषित नाम की कोटि में ग्रहण किया जाए तो प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त भेद विशेषित नाम रूप हैं।
यदि अजीवद्रव्य को अविशेषित नाम माना जाए तो धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद् गलास्तिकाय और अद्धासमय, ये विशेषित नाम होंगे। यदि पुद्गलस्तिकाय को भी अविशेषित नाम माना जाए तो परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, यह नाम विशेषित कहलायेंगे। सूत्र-१५१
त्रिनाम क्या है ? त्रिनाम के तीन भेद हैं । वे इस प्रकार-द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम । द्रव्यनाम क्या है ? द्रव्यनाम छह प्रकार का है । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद् गलास्तिकाय, अद्धासमय । गुणनाम क्या है ? पाँच प्रकार से हैं | वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, संस्थाननाम।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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