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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' वर्णनाम क्या है ? पांच भेद हैं । कृष्णवर्णनाम, नीलवर्णनाम, लोहित वर्णनाम, हारिद्र वर्णनाम, शुक्लवर्णनाम । गंधनाम क्या है ? दो प्रकार हैं । सुरभिगंधनाम, दुरभिगंधनाम । रसनाम क्या है ? पांच भेद हैं । तिक्तरसनाम, कटुकरसनाम, कषाय-रसनाम, आम्लरसनाम, मधुररसनाम स्पर्शनाम क्या है ? आठ प्रकार हैं । कर्कशस्पर्शनाम, मृदुस्पर्शनाम, गुरुस्पर्शनाम, लघुस्पर्शनाम, शीतस्पर्शनाम, उष्णस्पर्शनाम, स्निग्धस्पर्शनाम, रूक्षस्पर्शनाम । संस्थाननाम क्या है ? पाँच प्रकार हैं । परिमण्डलसंस्थाननाम, वृत्तसंस्थाननाम, यस्रसंस्थाननाम, चतुरस्रसंस्थाननाम, आयतसंस्थाननाम । पर्यायनाम क्या है ? अनेक प्रकार हैं । एकगुण काला, द्विगुणकाला यावत् अनन्तगुणकाला, एकगुणनीला, द्विगुणनीला यावत् अनन्तगुणनीला तथा इसी प्रकार लोहित, हारिद्र और शुक्लवर्ण की पर्यायों के नाम भी समझना, एकगुणसुरभिगंध, द्विगुणसुरभिगंध यावत् अनन्तगुणसुरभिगंध, इसी प्रकार दुरभिगंध के विषय में भी कहना । एकगुणतिक्त, द्विगुणतिक्त यावत् अनन्तगुणतिक्त, इसी प्रकार कटुक, कषाय, एवं मधुर रस की पर्यायों के लिये भी कहना । एकगुणकर्कश, द्विगुणकर्कश यावत् अनन्तगुणकर्कश, इसी प्रकार मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श की पर्यायों की वक्तव्यता है। सूत्र- १५२-१५८ उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं । स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम । इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अंत्याक्षरो द्वारा होता है । पुरुषनामों के अंत में आ, ई, ऊ, ओ' इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में 'ओ' को छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं । जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको नपुंसकलिंग वाला समझना । अब इन तीनों के उदाहरण कहते हैं । आकारान्त पुरुष नाम का उदाहरण राया है । ईकारान्त का गिरी तथा सिहरी हैं । ऊकारान्त का विण्हू और ओकारान्त का दुमो है । स्त्रीनाम में माला' यह पद अकारान्त का, सिरी पद ईकारान्त, जम्बू, ऊकारान्त नारी जाति के उदाहरण हैं । धन्न यह प्राकृतपद अकारान्त नपुंसक नाम का उदाहरण है । अच्छिं यह इंकारान्त नपुंसकनाम का तथा पीलुं ये उंकारान्त नपुंसकनाम के पद हैं । इस प्रकार यह त्रिनाम का स्वरूप है। सूत्र - १५९ चतुर्नाम क्या है ? चार प्रकार हैं । आगमनिष्पन्ननाम, लोपनिष्पन्ननाम, प्रकृतिनिष्पन्ननाम, विकारनिष्पन्ननाम । आगम-निष्पन्ननाम क्या है ? पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि ये सब आगमनिष्पन्ननाम हैं। लोपनिष्पन्ननाम क्या है ? ते + अत्र-तेऽत्र, पटो + अत्र-पटोऽत्र, घटो + अत्र-घटोऽत्र, रथो + अत्र रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम हैं । प्रकृतिनिष्पन्ननाम क्या है ? अग्नी एतौ, पटू इमौ, शाले एते, माले इमे इत्यादि प्रयोग प्रकृतिनिष्पन्ननाम हैं । विकारनिष्पन्ननाम क्या है ? दण्ड + अग्रं-दण्डाग्रम्, सा + आगता-साऽऽगता, दधि + इदंदधीदं, नदी + ईहते-नदीहते, महु + उदक-मधूदकं, बहु + ऊहते-बहूहते, ये सब विकारनिष्पन्ननाम हैं । सूत्र - १६० पंचनाम क्या है ? पाँच प्रकार का है । नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, औपसर्गिक और मिश्र । जैसे 'अश्व' यह नामिकनाम का, 'खलु' नैपातिकनाम का, 'धावति' आख्यातिकनाम का, ‘परि' औपसर्गिक और 'संयत' यह मिश्रनाम का उदाहरण है। सूत्र-१६१ छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं । औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक । औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है । औदयिक और उदयनिष्पन्न । औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है । उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं-जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। __जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार का है । यथा-नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 26
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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