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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र - २, 'अनुयोगद्वार'
सूत्र - १४७-१४९
एकनाम क्या है ? द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी 'नाम' ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष में कही गई है। यह एकनाम है ।
सूत्र - १५०
द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं- एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक । एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं । जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं ।
अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं। यथा- कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं ।
अथवा द्विनाम के दो प्रकार हैं । जीवनाम और अजीवनाम । जीवनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं । देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त इत्यादि । अजीवनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं। घट, पट, कट, रथ इत्यादि ।
अथवा अपेक्षादृष्टि से द्विनाम के और भी दो प्रकार हैं । यथा - विशेषित और अविशेषित । द्रव्य यह अविशेषित नाम है और जीवद्रव्य एवं अजीवद्रव्य ये विशेषित नाम हैं ।
जीवद्रव्य को अविशेषित नाम माने जाने पर नारक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ये विशेषित नाम हैं । नारक अविशेषित नाम है और रत्नप्रभा का नारक, शर्कराप्रभा का नारक यावत् तमस्तमः प्रभा का नारक यह विशेषित द्विनाम हैं । रत्नप्रभा का नारक इस नाम को अविशेषित माना जाए तो रत्नप्रभा का पर्याप्त नारक और अपर्याप्त नारक विशेषित नाम होंगे यावत् तमस्तमः प्रभापृथ्वी के नारक को अविशेषित मानने पर उसके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम कहलाएँगे ।
तिर्यंचयोनिक इस नाम को अविशेषित माना जाए तो एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये पाँच विशेषित नाम हैं ।
एकेन्द्रिय को अविशेषित नाम माना जाए तो पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय ये विशेषित नाम हैं । यदि पृथ्वीकाय नाम को अविशेषित माना जाए तो सूक्ष्मपृथ्वीकाय और बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं । सूक्ष्मपृथ्वी काय नाम को अविशेषित मानने पर पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम है । बादरपृथ्वीकाय नाम अविशेषित है तो पर्याप्त और अपर्याप्त बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम है । इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय इन नामों को अविशेषित नाम माने जाने पर अनुक्रम से उनके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम हैं । यदि द्वीन्द्रिय को अविशेषित नाम माना जाए तो पर्याप्त न्द्रिय और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय विशेषित नाम हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के लिए भी जानना ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक को अविशेषित नाम मानने पर जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं । जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह विशेषित नाम है । संमूर्च्छि जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो उसके पर्याप्त० और अपर्याप्त संमूर्च्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक ये दो भेद विशेषित नाम हैं । गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह नाम अविशेषित है और पर्याप्त तथा अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक नाम विशेषित है ।
थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक को अविशेषित नाम माने जाने पर चतुष्पद० और परिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम है । यदि चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक को अविशेषित माना जाए तो सम्मूर्छिम० और गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक ये भेद विशेषित नाम हैं । सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह अविशेषित नाम हो तो पर्याप्त० और अपर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं । यदि गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक
दीपरत्नसागर कृत्" (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद*
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