________________
आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' से नामोच्चारण करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? वर्धमान, पार्श्व से प्रारंभ करके प्रथम ऋषभ पर्यन्त नामोच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है? इन्हीं की एक से लेकर एक-एक की वृद्धि करके चौबीस संख्या की श्रेणी स्थापित कर परस्पर गुणाकार करने से जो राशि बनती है उसमें से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। सूत्र - १४०
गणनानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी क्या है ? एक, दस, सौ, सहस्र, दस सहस्र, लाख, दस लाख, करोड़, दस कोटि, कोटिशत, दस कोटिशत, इस प्रकार से गिनती करना पूर्वानुपूर्वी है । पश्चानुपूर्वी क्या है ? दस अरब से लेकर व्युत्क्रम से एक पर्यन्त की गिनती करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? इन्हीं को एक से लेकर दस अरब पर्यन्त की एक-एक वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणा करने पर जो भंग हों, उनमें से आदि और अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं। सूत्र - १४१
संस्थानापूर्वी क्या है ? उनके तीन प्रकार हैं-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं? समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान, हुंडसंस्थान के क्रम से संस्थानों के विन्यास करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? हुंडसंस्थान से लेकर समचतुरस्रसंस्थान तक संस्थानों का उपन्यास करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर छह तक की एकोत्तर वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से आदि और अन्त रूप दो भंगों को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। सूत्र - १४२
समाचारी-आनुपूर्वी क्या है ? वह तीन प्रकार की है-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी क्या है। वह इस प्रकार हैसूत्र- १४३-१४४
इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आवश्यकी, नैषेधिकी, आप्रच्छना, प्रतिप्रच्छना, छंदना, निमंत्रणा और उपसंपद् । यह इस प्रकार की सामाचारी है । पश्चानुपूर्वी क्या है ? उपसंपद् से लेकर इच्छाकार पर्यन्त स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर दस पर्यन्त एक-एक की वृद्धि द्वारा श्रेणी रूप में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने से प्राप्त राशि में से प्रथम और अन्तिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं। सूत्र - १४५
भावानुपूर्वी क्या है ? तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी क्या है ? औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव, पारिणामिकभाव, सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास पूर्वानुपूर्वी है । पश्चानुपूर्वी क्या है ? सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त भावों की स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर एकोत्तर वृद्धि द्वारा छह पर्यन्त की श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर प्राप्त राशि में से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं। सूत्र - १४६
नाम क्या है ? नाम के दस प्रकार हैं । एक नाम, दो नाम, तीन नाम, चार नाम, पाँच नाम, छह नाम, सात नाम, आठ नाम, नौ नाम, दस नाम ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
Page 23