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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन
विशुद्ध करता है | चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है ।
यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवलिसत्क वेदनीय आदि चार कर्मों का क्षय करता है । उसके बाद सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है । परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है । सूत्र - ११७२-११७३
भन्ते ! ज्ञान-सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ज्ञानसम्पन्नता से जीव सब भावों को जानता है । ज्ञान-सम्पन्न जीव चार गतिरूप अन्तों वाले संसार वन में नष्ट नहीं होता है ।
अध्ययन / सूत्रांक
जिस प्रकार ससूत्र सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता । ज्ञान, विनय, तप और चारित्र के योगों को प्राप्त होता है । तथा स्वसमय और परसमय में, प्रामाणिक माना जाता है ।
सूत्र - ११७४
भन्ते ! दर्शन सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? दर्शन सम्पन्नता से संसार के हेतु मिध्यात्व का छेदन करता है, उसके बाद सम्यक्त्व का प्रकाश बुझता नहीं है। श्रेष्ठ ज्ञान दर्शन से आत्मा को संयोजित कर उन्हें सम्यक् प्रकार से आत्मसात् करता हुआ विचरण करता है।
सूत्र - ११७५
भन्ते ! चारित्र-सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चारित्र - सम्पन्नता से जीव शैलेशीभाव को प्राप्त होता है । शैलेशी भाव को प्राप्त अनगार चार केवलि-सत्क कर्मों का क्षय करता है । तत्पश्चात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त करता है ।
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सूत्र ११७६
भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है ।
फिर शब्दनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
सूत्र - ११७७
भन्ते ! चक्षुष्-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चक्षुष्-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है ।
फिर रूपनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
सूत्र ·
११७८
भन्ते ! घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है ।
फिर गन्धनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है। पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
सूत्र- ११७९
भन्ते ! जिह्वा-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? जिह्वा - इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है ।
फिर रसनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
सूत्र - ११८०
भन्ते ! स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शो में होने वाले राग-द्वेष का निग्रह करता है ।
फिर स्पर्श-निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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