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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक भन्ते ! मुक्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मुक्ति से जीव अकिंचनता को प्राप्त होता है । अकिंचन जीव अर्थ के लोभी जनों से अप्रार्थनीय हो जाता है। सूत्र - ११६१
भन्ते ! ऋजुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ऋजुता से जीव काय, भाव, भाषा की सरलता और अविसंवाद को प्राप्त होता है । अविसंवाद-सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है। सूत्र - ११६२
भन्ते ! मृदुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को प्राप्त होता है । अनुद्धत जीव मृदु-मार्दवभाव से सम्पन्न होता है । आठ मद-स्थानों को विनष्ट करता है। सूत्र - ११६३
भन्ते ! भाव-सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भाव-सत्य से जीव भाव-विशुद्धि को प्राप्त होता है । भाव-विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होता है । अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होकर परलोक में भी धर्म का आराधक होता है। सूत्र-११६४
भन्ते ! करण सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? करण सत्य से जीव करणशक्ति को प्राप्त होता है। करणसत्य में वर्तमान जीव यथावादी तथाकारी' होता है। सूत्र- ११६५
भन्ते ! योग-सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? योग सत्य से जीव योग को विशुद्ध करता है। सूत्र-११६६
भन्ते ! मनोगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है । एकाग्र चित्त वाला जीव अशुभ विकल्पों से मन की रक्षा करता है, और संयम का आराधक होता है। सूत्र - ११६७
भन्ते ! वचनगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वचनगुप्ति से जीव निर्विकार भाव को प्राप्त होता है। निर्विकार जीव सर्वथा वागगुप्त तथा अध्यात्मयोग के साधनभूत ध्यान से युक्त होता है। सूत्र - ११६८
भन्ते ! कायगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायगुप्ति से जीव संवर को प्राप्त होता है । संवर से काय गुप्त होकर फिर से होनेवाले पापाश्रव का निरोध करता है। सूत्र - ११६९
भन्ते ! मन की समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन की समाधारणा से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है । एकाग्रता को प्राप्त होकर ज्ञानपर्यवों को-ज्ञान के विविध तत्त्वबोधरूप प्रकारों को प्राप्त होता है। ज्ञानपर्यवों को प्राप्त होकर सम्यग-दर्शन को विशुद्ध करता है और मिथ्या दर्शन की निर्जरा करता है। सूत्र - ११७०
भन्ते ! वाक् समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वाक् समाधारणा से जीव वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करता है । वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करके सुलभता से बोधि को प्राप्त करता है । बोधि की दुर्लभता को क्षीण करता है । सूत्र-११७१
भन्ते ! काय समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? काय समाधारणा से जीव चारित्र के पर्यवों को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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