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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ८८
मुनि उन्नत मुंह, अवनत हो कर, हर्षित या आकुल होकर न चले, इन्द्रियों के विषय को दमन करके चले। सूत्र - ८९
उच्च-नीच कुल में गोचरी के लिए मुनि सदैव जल्दी-जल्दी तथा हँसी-मजाक करता हुआ और बोलता हुआ न चले। सूत्र - ९०
गोचरी के लिए जाता हुआ झरोखा, थिग्गल द्वार, संधि जलगृह, तथा शंका उत्पन्न करनेवाले अन्य स्थानों को भी छोड़ दे। सूत्र - ९१
राजा के, गृहपतियों के तथा आरक्षिकों के रहस्य के उस स्थान को दूर से ही छोड़ दे, जहां जाने से संक्लेश पैदा हो। सूत्र - ९२
साधु-साध्वी निन्दित कुल, मामकगृह और अप्रीतिकर कुल में न प्रवेशे, किन्तु प्रीतिकर कुल में प्रवेश करे । सूत्र - ९३
साधु-साध्वी, आज्ञा लिये बिना पर्दा तथा वस्त्रादि से ढंके हुए द्वार को स्वयं न खोले तथा कपाट को भी न उघाड़े। सूत्र - ९४
भिक्षा के लिए प्रविष्ट होने वाला साधु मल-मूत्र की बाधा न रखे । यदि बाधा हो जाए तो प्रासुक स्थान देख कर, गृहस्थ की अनुज्ञा लेकर मल-मूत्र का उत्सर्ग करे । सूत्र - ९५-९६
निचे द्वार वाले घोर अन्धकारयुक्त कोठे, जिस कोठे में फूल, बीज आदि बिखरे हुए हों, तथा जो कोष्ठक तत्काल लीपा हुआ, एवं गीला देखे तो उस में प्रवेश न करे। सूत्र - ९७
संयमी मुनि, भेड़, बालक, कुत्ते या बछड़े को लांघ कर अथवा हटा कर कोठे में प्रवेश न करे । सूत्र - ९८-९९
गौचरी के लिए घर में प्रविष्ट भिक्षु आसक्तिपूर्वक न देखे; अतिदूर न देखे, उत्फुल्ल दृष्टि से न देखे; तथा भिक्षा प्राप्त न होने पर बिना कुछ बोले लौट जाए । अतिभूमि न जाए, कुल की मर्यादित भूमि को जान कर मित भूमि तक ही जाए। सूत्र - १००
विचक्षण साधु वहाँ ही उचित भूभाग प्रतिलेखन करे, स्थान और शौच के स्थान की ओर दृष्टिपात न करे। सूत्र - १०१-१०२
सर्वेन्द्रिय-समाहित भिक्षु (सचित्त) पानी और मिट्टी लाने के मार्ग तथा बीजों और हरित (हरी) वनस्पतियों को वर्जित करके खड़ा रहे।
वहाँ खड़े हुए उस साधु को देने के लिए कोई गृहस्थ पान और भोजन लाए तो उसमें से अकल्पनीय को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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