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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक ग्रहण न करे, कल्पनीय ही ग्रहण करे । सूत्र - १०३
यदि साधु या साध्वी के पास भोजन लाते हुए कोई-उसे नीचे गिराए तो साधु उस आहार का निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए कल्पनीय नहीं है। सूत्र - १०४
प्राणी, बीज और हरियाली को कुचलता हुऐ आहार लाने वाले को असंयमकारि जान कर उससे न ले। सूत्र - १०५-१०६
इसी प्रकार एक बर्तन में से दूसरे बर्तन में डालकर, सचित्त वस्तु पर रखकर, सचित्त वस्तु का स्पर्श करके तथा सचित्त जल को हिला कर, अवगाहन कर, चलित कर, पान और भोजन लाए तो मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करना कल्प्य नहीं है। सूत्र - १०७
पुराकर्म-कृत (साधु को आहार देने से पूर्व ही सचित्त जल से धोये हुए) हाथ से, कड़छी से अथवा बर्तन से (मुनि को भिक्षा) देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए कल्पनीय (ग्रहण करने योग्य) नहीं है। (अर्थात् - मैं ऐसा दोषयुक्त आहार नहीं ले सकता ।) सूत्र - १०८
यदि हाथ या कडछी भीगे हुए हो, सचित्त जल से स्निग्ध हो, सचित्त रज, मिट्टी, खार, हरताल, हिंगलोक, मनःशील, अंजन, नमक तथासूत्र - १०९
गेरु, पीली मट्टी, सफेद मट्टी, फटकडी, अनाज का भुसा तुरंत का पीसा हुआ आटा, फल या टुकडा इत्यादि से लिप्त हो तो मुनि को नहीं कल्पता। सूत्र - ११०
जहाँ पश्चात्कर्म की संभावना हो, वहाँ असंसृष्ट हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे। सूत्र - १११
(किन्तु) संसृष्ट हाथ से, कड़छी से या बर्तन से दिया जाने वाला आहार यदि एषणीय हो तो मुनि लेवे । सूत्र - ११२-११३
(जहाँ) दो स्वामी या उपभोक्ता हों और उनमें से एक निमंत्रित करे, तो मुनि उस दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे । वह दूसरे के अभिप्राय को देखे ! यदि उसे देना प्रिय लगता हो तो यदि वह एषणीय हो तो ग्रहण कर ले। सूत्र -११४
गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किये विविध पान और भोजन यदि उसके उपभोग में आ रहे हों, तो मुनि ग्रहण न करे, किन्तु यदि उसके खाने से बचे हुए हों तो उन्हें ग्रहण कर ले । सूत्र - ११५-११८
कदाचित् कालमासवती गर्भवती महिला खड़ी हो और श्रमण के लिए बैठे; अथवा बैठी हो और खड़ी हो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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