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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति पात्र-पडिलेहन की मुहपत्ति, पड़ला, रजस्त्राण, गुच्छा, तीन कपड़े, ओघो और मुहपत्ति होती है । बाकी ११-१०-९५-४-३ और अन्य जघन्य दो प्रकार से भी होती है । दो प्रकार में ओघो, मुहपत्ति, दो वस्त्र । पाँच प्रकार में ओघो, मुहपत्ति, तीन वस्त्र, नौ प्रकार में ओघो, मुहपत्ति, पात्र, झोली, नीचे का गुच्छा, पात्र-केसरिका, पड़ला, रजस्त्राण, गुच्छो और एक वस्त्र । ग्यारह प्रकार में ओघो, मुहपत्ति, पात्र, झोली, नीचे का गुच्छा, पात्र केसरिका, पड़ला, रजस्त्राण, गुच्छा और दो वस्त्र । बारह प्रकार में ओघो, मुहपत्ति, पात्र, झोली, नीचे का गुच्छा, पात्र केसरिका, पड़ला, रजस्त्राण गुच्छा और तीन वस्त्र । सूत्र-१०११-१०२७ स्थविर कल्पी की ओघ उपधि चौदह भेद से है । ऊपर के अनुसार बारह के अलावा, १३ मात्रक, १४ चोलपट्टो । साध्वी के लिए पच्चीस प्रकार की - पात्र, झोली, नीचे का गुच्छा, पात्र-केसरिका, पड़ला, रजस्त्राण, गुच्छा, तीन कपड़े, ओघो, मुहपत्ति, मात्रक, कमंढ़क (खाने के लिए अलग पात्र ।) अवग्रहानन्तक (गुह्य हिस्से की रक्षा करनेके लिए कोमल और मजबूत नाव समान | पट्टा (शरीर प्रमाण कटीबँध) अद्धोरूग । (आँधी जाँघ तक बिना सीए चड्डी जैसा) चलणी (जानु प्रमाण का साड़ा जैसा - नर्तकी के जैसा) दो निवसनी । अन्तनिर्वसनी अर्ध साँधक तक लम्बी, बहिर्निवसनि धुंटी तक लम्बी । कूचूक (बिना सिए) छाती ढंकने के लिए उपकक्षिका बाँई ओर से कंचुक ढंकने के लिए वेकक्षिका (उपकक्षिका और कंचुक ढंकने के लिए) संघाडी चार-दो हाथ चौड़ी समवसरण में व्याख्यान में खड़े रहकर, सिर से पाँव तक आच्छादन के लिए । स्कंधकरणी (चार हाथ के फैलाववाली, स्वरूपवान् साध्वी को खूधी करने के लिए।) इन उपधि में कुछ उत्तम, कुछ मध्यम और कुछ जघन्य प्रकार की गिनी जाती है । उसके विभाग इस तरहसूत्र-१०२८-१०३० जिनकल्पी की उपधि में उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम चार - तीन वस्त्र और पात्रका, मध्यम चार - झोली, पड़ला, रजस्त्राण और ओघो । जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छो, मुहपत्ति और पात्र केसरिका ।। स्थविरकल्पीकी उत्तम. मध्यम और जघन्य उपधि - उत्तम चार - तीन वस्त्र और पात्र । मध्यम छ - पडला. रजस्त्राण, झोली, चोलपट्टो, ओघो और मात्रक | जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छो, मुहपत्ति और पात्र केसरिका साध्वी की उत्तम, मध्यम और जघन्य उपधि । उत्तम आठ- चार संघाटिका, मुख्यपात्र, स्कंधकरणी, अन्तर्निवसनी और बहिर्निवसनी, मध्यम तेरह - झोली, पड़ला, रजस्त्राण, ओघो, मात्रक, अवग्रहानन्तक, पट्टो, अद्धोरूक, चलणी, कंचूक, उत्कक्षिका, वैकक्षिका, कमढ़क । जघन्य चार - गुच्छो, नीचे का गुच्छा, मुहपत्ति और पात्र पूजने की पात्र केसरिका । सूत्र- १०३१-१०३७ ओघ उपधि का प्रमाण । १. पात्र, समान और गोल, उसमें अपनी तीन वेंत और चार अंगुल मध्यम प्रमाण है। इससे कम हो तो जघन्य, ज्यादा हो तो उत्कृष्ट प्रमाण गिना जाता है या अपने आहार जितना पात्र । वैयावच्च करनेवाले आचार्य ने दीया हुआ या अपना नंदीपात्र रखे नगर का रोध या अटवी उतरते ही आदि कारण से इस नंदीपात्र का उपयोग करे । पात्रा मजबूत, स्निग्ध वर्णवाला, पूरा गोल और लक्षणवाला ग्रहण करे । जला हुआ छिद्रवाला या झुका हुआ पात्र नहीं रखना चाहिए । छ काय जीव की रक्षा के लिए पात्र रखना पड़ता है। सूत्र-१०३८-१०४५ लक्षणवाला - चारों ओर से समान, गोल, मजबत, अपने स्निग्ध वर्णवाला हो ऐसा पात्र ग्रहण करना चाहिए । बिना लक्षण के - ऊंच-नीच, झका हआ, छिद्रवाला हो वो पात्रा नहीं रखना चाहिए । समान गोल पात्रा से फायदा हो । मजबूत पात्र से गच्छ की प्रतिष्ठा हो । व्रणरहित पात्रा से कीर्ति और आरोग्य मिले । स्निग्ध वर्णवाले मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 41
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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