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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' अमंगल मानता हो तो साधु को देखते ही पराभव - अपमान करे, नींदा करे, मारे । यह साधु पेट भरने में ही मानते हैं, सुबह-सुबह नीकल पड़े आदि । भिक्षा का समय होने के बाद गोचरी के लिए जाए तो यदि गृहस्थ सरल हो तो घर में कहे कि, अब से इस समय पर रसोई तैयार हो ऐसा करना इससे उद्गम आधाकर्म आदि दोष होते हैं या साधु के लिए आहार आदि रहने दे, गृहस्थ प्रान्त हो या बुराई करे कि, क्या यह भिक्षा का समय है ? नहीं सुबह में नहीं दोपहर में ? समय बिना भिक्षा के लिए जाने से काफी घूमना पड़े इससे शरीर को क्लेश हो । भिक्षा के समय से पहले जाए तो । यदि भद्रक हो तो रसोई जल्द करे, प्रान्त हो तो हिलना आदि करे | आवश्यक - ठल्ला मात्रादि की शंका दूर करके भिक्षा के लिए जाना । उपाश्रय के बाहर नीकलते ही, 'आवस्सहि' कहना । संघाट्टक - दो साधु का साथ में भिक्षा के लिए जाना, अकेले जाने में कईं दोष की संभावना है। स्त्री का उपद्रव हो या कुत्ते, प्रत्यनीक आदि से उपघात हो । साधु अकेला भिक्षा के लिए जाए उसके कारण – मैं लब्धिमान हूँ इसलिए अकेला जाए, भिक्षा के लिए जाए वहाँ धर्मकथा करने लगे इसलिए उनके साथ दूसरे साधु न जाए । मायावी होने से अकेला जाए । अच्छा अच्छा बाहर खा ले और सामान्य गोचरी वसति में लाए इसलिए साथ में दूसरे साधु को न ले जाए । आलसी होने से अकेला गोचरी लाकर खाए । लुब्ध होने से दूसरा साधु साथ में हो तो विगई आदि न माँग सके इसलिए, निर्धमि होने से अनेषणीय ग्रहण करे, इसलिए अकेला जाए । अकाल आदि कारण से अलग-अलग जाए तो भिक्षा मिल सके इसलिए अकेले जाए । आत्माधिष्ठित यानि खुद को जो मिले उसका ही उपयोग करे इसलिए अकेला जाए। लड़ाकु हो तो उसके साथ कोई न जाए । उपकरण उत्सर्ग से सभी उपकरण साथ में ले जाकर भिक्षा के लिए जाए। सभी उपकरण साथ में लेकर भिक्षा के लिए घूमने में समर्थ न हो तो पात्रा, पड़ला, रजोहरण, दो वस्त्र (एक सूती-दूसरा ऊनी) और डंडा लेकर गोचरी के लिए जाए । मात्रक - पात्रा के साथ दूसरा मात्रक लेकर भिक्षा के लिए जाए। जिसमें सहसा भिक्षा लाभ आचार्य आदि की सेवा आदि फायदे भाष्यकारने बताए हैं । काऊस्सग्गउपयोग करावणियं का आँठ श्वासोच्छवास का काउस्सग्ग करके आदेश माँगे, 'संदिसह आचार्य कहे 'लाभ' साधु कहे, कहंति (कहलेसु) आचार्य कहे, 'तहति' (जहा गहिअपुव्वसाहूहिं) योग फिर कहे कि आवस्सियाए जस्स जोगो जो-जो संयम के लिए जरुरी होगा वो-वो मैं ग्रहण करूँगा। अपवाद - आचार्य, ग्लान, बाल, तपस्वी आदि के लिए दो से ज्यादा गोचरी के लिए जाए | जाने के बाद उल्ला मात्रा की शंका हो जाए तो यतनापर्वक गहस्थ की अनुमति लेकर शंका दूर करे । साथ में गोचरी के लिए घुमने से समय लगे ऐसा न हो तो दोनो अलग हो जाए । एकाकी गोचरी के लिए गए हो और शायद स्त्री, भोग लिए बिनती करे, तो उसे समझाए कि 'मैथुन सेवन से आत्मा नरक में जाती है । इत्यादि समझाने के बावजूद १ न छोड़े तो बोले कि मेरे महाव्रत गुरु के पास रखकर आऊं ।' ऐसा कहकर घर के बाहर नीकल जाए । वो जाने न दे तो कहे कि कमरे में मेरे व्रत रख दूं । फिर कमरे में जाकर गले में फाँसी लगाए । यह देखकर भय से उस स्त्री के मोहोदय का शमन हो जाए और छोड़ दे । ऐसा करने के बावजूद भी शायद उस स्त्री के मोहोदय का शमन न हो तो गले में फाँसी खाकर मर जाए । लेकिन व्रत का खंडन न करे । इस प्रकार स्त्री की यतना करे । कुत्ते, गाय आदि की डंड़े के बदले यतना करे । प्रत्यनीक विरोधी के घर में न जाना, शायद उसके घर में प्रवेश हो जाए और प्रत्यनीक पकड़े तो शोर मचाए जिससे लोग इकट्ठे होने से वहाँ से नीकल जाए। सूत्र - ६८०-६८८ भिक्षा ग्रहण करते यतना - भिक्षा ग्रहण करते ही किसी जीव की विराधना न हो उसका उपयोग रखे । कोई निमित्तादि पूछे तो बताए कि मैं नहीं जानता । हिरण्य, धन आदि रहा हो वहाँ न जाए । पूर्वे कहने के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा करे । उद्गमादि दोष रहित आहार आदि की गवेषणा करना । अशुद्ध संसक्त आहार पानी आ जाए तो मालूम होते ही तुरन्त परठवे । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 31
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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