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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' परीक्षा न कर सके । शय्यातर पूछे कि, "तुम कब आओगे?'' अगीतार्थ होने से बोले कि, 'कुछ दिन में आ जाएंगे, इस प्रकार अविधि से बोलने का दोष लगे । इसलिए अगीतार्थ साधु को न भेजे । योगी को- भेजे तो वो जल्द अपना काम नीपटाने की ईच्छावाला हो, तो जल्द जाए, इसलिए मार्ग की अच्छी प्रकार से प्रत्युप्रेक्षा न हो सके और फिर पाठ स्वाध्याय का अर्थी हो, इसलिए भिक्षा के लिए ज्यादा न घूमे, दूध दहीं आदि मिलता हो तो भी ग्रहण न करे, इसलिए योगी - सूत्रोद्देश आदि के योग करनेवाले साधु को न भेजे । वृषभ को - भेजे तो वो वृषभ साधु गुस्से से स्थापना कुल न कहे या कहे लेकिन दूसरे साधु को वहाँ जाने न दे या स्थापना कुल उसके ही पहचानवाले हो, इसलिए दूसरे साधु को प्रायोग्य आहार आदि न मिले, इसलिए ग्लानादि साधु सीदाय, इसलिए वृषभ साधु को न भेजे । तपस्वी को- भेजे तो तपस्वी दुःखी हो जाए या फिर तपसी समझकर लोग आहारादि ज्यादा दे, इसलिए तपस्वी साधु को न भेजे । दूसरा किसी समर्थ साधु जाए ऐसा न हो तो अपवाद से ऊपर के अनुसार साधु को यतनापूर्वक भेजे। बाल साधु को भेजे तो उसके साथ गणावच्छेदक को भेजे, वो न हो तो दूसरे गीतार्थ साधु को भेजे, वो न हो तो दूसरे अगीतार्थ साधु को सामाचारी कहकर भेजे । योगी को भेजे तो अनागाढ़ योगी हो तो योग में से नीकालकर भेजे । वो न हो तो तपस्वी को पारणा करवाकर भेजे । वो न हो तो वैयावच्च करनेवाले को भेजे । वो न हो तो वृद्ध और जवान या बाल और जवान को भेजे । सूत्र-२२०-२४३ __ मार्ग में जाते हुए चार प्रकार की प्रत्युप्रेक्षणा करते हुए जाए । रास्ते में ठल्ला मात्रा की भूमि, पानी के स्थान, भिक्षा के स्थान, वसति - रहने के स्थान देखे और फिर भयवाले स्थान हो वो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऐसे चार प्रकार प्रत्युप्रेक्षाणा करे । द्रव्य से- रास्ते में काँटे, चोर, शिकारी जानवर, प्रत्यनीक कुत्ते आदि । क्षेत्र से ऊंची, नीचे, खड्डे-पर्वत पानीवाले स्थान आदि । काल से - जाने में जहाँ रात को आपत्ति हो या दिन में आपत्ति हो तो उसे पहचान लो या दिन में रास्ता अच्छा है या बूरा, रात को रास्ता अच्छा है या बूरा उसकी जाँच करे, भाव - उस क्षेत्र में निह्नव, चरक, परिव्राजक आदि बार-बार आते हों इससे लोगों की दान की रुचि न रही हो, उसकी जाँच करे । जब तक इच्छित स्थान पर न पहुँचे तब तक सूत्र पोरिसी, अर्थ पोरिसी न करे । वो क्षेत्र के नजदीक आ जाए तब पास के गाँव में या गाँव के बाहर गोचरी करके, शाम के समय गाँव में प्रवेश करे और वसति ढूँढ़े, वसति मिल जाने पर कालग्रहण लेकर दूसरे किसी न्यून पोरिसी तक स्वाध्याय करे । फिर संघाटक होकर गोचरी पर जाए । क्षेत्र के तीन हिस्से करे । एक हिस्से में सुबह में गोचरी पर जाए, दूसरे हिस्से में दोपहर को गोचरी के लिए जाए और तीसरे में शाम को गोचरी के लिए जाए । सभी जगह से थोड़ा थोड़ा ग्रहण करे और दूध, दही, घी आदि माँगे क्योंकि माँगने से लोग दानशील है या कैसे हैं उसका पता चले । तीन बार गोचरी में जाकर परीक्षा ले । इस प्रकार पास में रहे आसपास के गाँव में भी परीक्षा ले । सभी चीजें अच्छी प्रकार से मिल रही हो तो वो क्षेत्र उत्तम कहलाता है । कोई साधु शायद काल करे तो उसे परठ सके उसके लिए महास्थंडिलभूमि भी देख रखे । वसति किस जगह पर करनी और कहाँ न करे उसके लिए जो वसति हो उसमें दाँई ओर पूर्वाभिमुख वृषभ बैठा हो ऐसी कल्पना करे । उसके हरएक अंग के फायदे इस प्रकार है । शींग के स्थान पर वसति करे तो कलह हो । पाँव या गदा के स्थान पर वसति करे तो पेट की बीमारी हो । पूँछ की जगह वसति करे तो नीकलना पड़े । मुख के स्थान पर वसति करे तो अच्छी गोचरी मिले । शींग के या खंभे के बीच में वसति करे तो पूजा सत्कार हो । स्कंध और पीठ के स्थान पर वसति करे तो बोझ लगे, पेट के स्थान पर वसति करे तो हमेशा तृप्त रहे। सूत्र- २४४-२४६ शय्यातर के पास से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से प्रायोग्य की अनुज्ञा पाए । द्रव्य से - घास, डगल, भस्म आदि की अनुज्ञा । क्षेत्र से - क्षेत्र की मर्यादा आदि । काल से - रात को या दिन में ठल्ला मात्रु परठवने के लिए अनुज्ञा । भाव से - ग्लान आदि के लिए पवन रहित आदि प्रवेश की अनुज्ञा । शय्यातर कहते हैं कि मैं तुम्हें इतना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 17
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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