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आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' परिणाम की विशुद्धि रखे । लेकिन क्लिष्ट भाव या अविधि न करे । सूत्र- ९९-१००
पहला और दूसरा ग्लान यतना, तीसरा श्रावक, चौथा साधु, पाँचवी वसति, छठा स्थान स्थित (उस अनुसार प्रवेश विधि के बारे में बताते हैं । गाँव प्रवेश के प्रयोजन को बताते हुए कहते हैं कि उस विधि का क्या फायदा ?) इहलौकिक और परलौकिक दो फायदे हैं । पृच्छा के भी दो भेद । उसके भी एक-एक आदि भेद हैं।
सूचना -ओहनिज्जुत्ति में अब आगे जरुरी भावानुवाद है । उसमें कहीं पर नियुक्ति भाष्य या प्रक्षेप का अनुवाद नहीं भी किया और कहीं द्रोणाचार्यजी की वृत्ति के आधार पर विशेष स्पष्टीकरण भी किए हैं | मुनि दीपरत्नसागर। सूत्र-१०१
इहलौकिक गुण - जिस काम के लिए साधु नीकला हो उस काम का गाँव में पता चले कि वो वहाँ से नीकल गए हैं, अभी कुछ जगह पर ठहरे हैं या तो मासकल्प आदि करके शायद उसी गाँव में आए हुए हों, तो इसलिए वही काम पूरा हो जाए।
पारलौकिक गुण - शायद गाँव में किसी (साधु-साध्वी) बीमार हो तो उसकी सेवा की तक मिले । गाँव में जिन मन्दिर हो तो उनके दर्शन वंदन हो, गाँव में कोई वादी हो या प्रत्यनीक हो और खुद वादलब्धिसंपन्न हो तो उसे शान्त कर सके। सूत्र - १०२
पृच्छा - गाँव में प्रवेश करने से पृच्छा दो प्रकार से होती है । अविधिपृच्छा, विधिपृच्छा । अविधिपृच्छा - गाँव में साधु हैं कि नहीं? साध्वी हो तो उत्तर मिले कि साधु नहीं है । ‘साध्वी है कि नहीं?' तो साधु हो तो उत्तर देनेवाला बोले कि 'साध्वी नहीं है। अलावा घोडा-घोडी' न्याय से शंका भी हो। सूत्र - १०३
श्रावक है कि नहीं ऐसा पूछे तो उसे शक हो कि 'इसे यहाँ आहार करना होगा । श्राविका विषय पूछे तो उसे शक हो कि जरुर यह बूरे आचारवाला होगा । जिनमंदिर का पूछे तो दूसरे आचारवाले हो तो भी न बताए इससे तद्विषयक फायदे की हानि हो । इसलिए विधि पृच्छा करनी चाहिए। सूत्र-१०४-१०७
विधिपृच्छा - गाँव में आने-जाने के रास्ते में खड़े रहकर या गाँव के नजदीक या कूएं के पास लोगों को पूछे कि, ''गाँव में हमारा पक्ष है ?' उसको मालूम न हो तो पूछे कि, तुम्हारा पक्ष कौन-सा ? तब साधु बताए कि, जिनमंदिर, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका । यदि गाँव में जिनमंदिर हो तो पहले मंदिर में दर्शन कर के फिर साधु के पास जाए । सांभोगिक साधु हो तो वंदन करके सुखशाता पूछे । कहे कि, आपके दर्शन के लिए ही गाँव में आए हैं। अब हमारे काम पर जाते हो । यदि वहाँ रहे साधु ऐसा बोले कि, 'यहाँ साधु बीमार है, उसे औषध कैसे दे, वो हम नहीं जानते।' आया हुआ साधु को यदि पता हो तो औषध का संयोजन बताए और व्याधि शान्त हो तब विहार करे सूत्र- १०८-११३
ग्लानपरिचर्यादि- गमन, प्रमाण, उपकरण, शुकून, व्यापार, स्थान, उपदेश लेना।
गमन - बीमार साधु में शक्ति हो तो वैद्य के वहाँ ले जाए । यदि शक्ति न हो तो दूसरे साधु औषध के लिए वैद्य के वहाँ जाए । प्रमाण - वैद्य के वहाँ तीन, पाँच या सात साधु को जाना । सगुन - जाते समय अच्छे सगुन देखकर जाना । व्यापार - यदि वैद्य भोजन करता हो, गुड़गुमड़ काटता हो तो उस समय वहाँ न जाना । स्थानयदि वैद्य कचरे के पास खड़ा हो उस समय न पूछे, लेकिन पवित्र स्थान में बैठा हो तब पूछे । उपदेश - वैद्य को
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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