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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, 'दशाश्रुतस्कन्ध'
उद्देशक/सूत्र दशा-४-गणिसंपदा पहले, दूसरे, तीसरे अध्ययन में कहे गए दोष शैक्ष को त्याग करने के लिए उचित हैं । उन सबका परित्याग करने से वो शैक्ष गणिसंपदा योग्य होता है । इसलिए अब इस "दशा'' में आठ प्रकार की गणिसंपदा का वर्णन है।
हे आयुष्मान ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व-मुख से मैंने इस प्रकार सुना है । यह (आर्हत प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने सचमुच आठ प्रकार की गणिसंपदा कही है। उस स्थविर भगवंत ने वाकई, कौन सी आठ प्रकार की गणिसंपदा बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ८-प्रकार की संपदा कही है वो इस प्रकार है-आचार, सूत्र, शरीर, वचन, वाचना, मति, प्रयोग और संग्रह परिज्ञा । सूत्र-६
वो आचार संपदा कौन-सी हैं ? आचार यानि भगवंत की प्ररूपी हुई आचरणा या मर्यादा दूसरी प्रकार से कहे तो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य उन पाँच की आचरणा, संपदा यानि संपत्ति । यह आचार संपत्ति चार प्रकार से हैं वो इस प्रकार - संयम क्रिया में सदा जुड़े रहना, अहंकार रहित होना, अनियत विहार होना यानि एक स्थान पर स्थायी होकर न रहना, स्थविर की माफिक यानि श्रुत और दीक्षा पर्याय ज्येष्ठ की प्रकार गम्भीर स्वभाववाले होना। सूत्र-७
वो श्रुत-संपत्ति कौन-सी है ? (श्रुत यानि आगम या शास्त्रज्ञान) यह श्रुत संपत्ति चार प्रकार से बताई है। वो इस प्रकार - बहुश्रुतता-कईं शास्त्र के ज्ञाता होना, परिचितता-सूत्रार्थ से अच्छी प्रकार परिचित होना । विचित्र श्रुतता-स्वसमय और परसमय के तथा उत्सर्ग-अपवाद के ज्ञाता होना, घोषविशुद्धि कारकता-शुद्ध उच्चारण वाले होना।
सूत्र-८
वो शरीर संपत्ति कौन-सी है ? शरीर संपत्ति चारप्रकार से । वो ऐसे-शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का सही नाप होना, कुरूप या लज्जा पैदा करे ऐसे शरीरवाले न होना, शरीर संहनन सुद्रढ़ होना, पाँच इन्द्रिय परिपूर्ण होना । सूत्र-९
वो वचन संपत्ति कौन-सी है ? (वचन यानि भाषा) वचन संपत्ति चार प्रकार की बताई है । वो इस प्रकारआदेयता, जिसका वचन सर्वजन माननीय हो, मधुर वचनवाले होना, अनिश्रितता राग-द्वेष रहित यानि कि निष्पक्ष पाती वचनवाले होना, असंदिग्धता-संदेह रहित वचनवाले होना। सूत्र-१०
वो वाचना संपत्ति कौन-सी है ? वाचना संपत्ति चार प्रकार से बताई है । वो इस प्रकार-शिल्प की योग्यता को तय करनेवाली होना, सोचपूर्वक अध्यापन करवानेवाली होना, लायकात अनुसार उपयुक्त शिक्षा देनेवाली हो, अर्थ-संगतिपूर्वक नय-प्रमाण से अध्यापन करनेवाली हो । सूत्र-११
वो मति संपत्ति कौन-सी है ? (मति यानि जल्द से चीज को ग्रहण करना) मति संपत्ति चार प्रकार से बताई है । वो इस प्रकार-अवग्रह सामान्य रूप में अर्थ को जानना, ईहा विशेष रूप में अर्थ जानना, अवाय-ईहित चीज का विशेष रूप से निश्चय करना, धारणा-जानी हुई चीज का कालान्तर में भी स्मरण रखना ।
वो अवग्रहमति संपत्ति कौन-सी है ? अवग्रहमति संपत्ति छ प्रकार से बताई है। शीघ्र ग्रहण करना, एक साथ कईं अर्थ ग्रहण करना, अनिश्रित अर्थ को अनुमान से ग्रहण करना, संदेह रहित होकर अर्थ ग्रहण करना।
उसी प्रकार ईहा और अपाय मतिसंपत्ति छ प्रकार से जानना ।
मुनि दीपरत्रसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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