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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, ‘दशाश्रुतस्कन्ध'
उद्देशक/सूत्र वो धारणा मति-संपत्ति कौन-सी है ? धारणा मतिसंपत्ति छ प्रकार से बताई है । कईं अर्थ, कई प्रकार के अर्थ, पहले की बात, अनुक्त अर्थ का अनुमान से निश्चय और ज्ञात अर्थ को संदेह रहित होकर धारण करना । वो धारणा मति संपत्ति है। सूत्र-१२
वो प्रयोग संपत्ति कौन-सी है? वो प्रयोग-संपत्ति चार प्रकार से है । वो इस प्रकार अपनी शक्ति जानकर वादविवाद करना, सभा के भावों को जानकर, क्षेत्र की जानकारी पाकर, वस्तु विषय को जानकर पुरुष विशेष के साथ वाद-विवाद करना यह प्रयोग-संपत्ति । सूत्र-१३
वो संग्रह परिज्ञा संपत्ति कौन-सी है ? संग्रह परिज्ञा संपत्ति चार प्रकार से । वो इस प्रकार-वर्षावास के लिए कईं मुनि को रहने के उचित स्थान देखना, कईं मुनिजन के लिए वापस करना कहकर पीठ फलक शय्या संथारा ग्रहण करना, काल को आश्रित करके कालोचित कार्य करना, करवाना, गुरुजन का उचित पूजा-सत्कार करना। सूत्र-१४
आठ प्रकार की संपदा के वर्णन के बाद अब गणि का कर्तव्य कहते हैं । आचार्य अपने शिष्य को आचारविनय, श्रुत विनय, विक्षेपणा – (मिथ्यात्व में से सम्यक्त्व में स्थापना करने समान) विनय और दोष निर्घातन-(दोष का नाश करने समान) विनय ।।
वो आचार विनय क्या है ? आचार-विनय (पाँच प्रकार के आचार या आठ कर्म के विनाश करनेवाला आचार यानि आचार विनय) चार प्रकार से कहा है।
संयम के भेद प्रभेद का ज्ञान करवाकर आचरण करवाना, गण-सामाचारी, साधु संघ को सारणा-वारणा आदि से संभालना-ग्लान को, वृद्ध को संभालने के लिए व्यवस्था करना-दूसरे गण के साथ उचित व्यवहार करना, कब-कौन-सी अवस्था में अकेले विहार करना उस बात का ज्ञान करवाना।
वो श्रुत विनय क्या है ? श्रुत विनय चार प्रकार से बताया है । जरुरी सूत्र पढ़ाना, सूत्र के अर्थ पढ़ाना, शिष्य को हितकर उपदेश देना, प्रमाण, नय, निक्षेप, संहिता आदि से अध्यापन करवाना, यह है श्रुत विनय ।
विक्षेपणा विनय क्या है ? विक्षेपणा विनय चार प्रकार से बताया है । सम्यक्त्व रूप धर्म न जाननेवाले शिष्य को विनय संयुक्त करना, धर्म से च्युत होनेवाले शिष्य को धर्म में स्थापित करना, उस शिष्य को धर्म के हित के लिए, सुख, सामर्थ्य, मोक्ष या भवान्तर में धर्म आदि की प्राप्ति के लिए तत्पर करना, यह है विक्षेपणा विनय ।
दोष निर्घातन विनय क्या है ? दोष निर्घातन विनय चार प्रकार से बताया है । वो इस प्रकार-क्रुद्ध व्यक्ति का क्रोध दूर करवाए, दुष्ट-दोषवाली व्यक्ति के दोष दूर करना, आकांक्षा, अभिलाषावाली व्यक्ति की आकांक्षा का निवारण करना, आत्मा को सुप्रणिहित श्रद्धा आदि युक्त रखना । यह है दोष-निर्घातन विनय । सूत्र-१५
इस प्रकार शिष्य की (ऊपर बताए अनुसार) चार प्रकार से विनय प्रतिपत्ति यानि गुरु भक्ति होती है । वो इस प्रकार-संयम के साधक वस्त्र, पात्र आदि पाना, बाल ग्लान असक्त साधु की सहायता करना, गण और गणि के गुण प्रकाशित करना, गण का बोझ वहन करना।
उपकरण उत्पादन क्या है ? वो चार प्रकार से बताया है-नवीन उपकरण पाना, पूराने उपकरण का संरक्षण और संगोपन करना, अल्प उपकरणवाले को उपकरण की पूर्ति करना, शिष्य के लिए उचित विभाग करना।
सहायता विनय क्या है ? सहायता विनय चार प्रकार से बताया है-गुरु की आज्ञा को आदर के साथ
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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