________________
आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, ‘दशाश्रुतस्कन्ध'
उद्देशक/सूत्र स्वीकार करना, गुरु की आज्ञा के मुताबिक शरीर की क्रिया करना, गुरु के शरीर की यथा उचित सेवा करना, सर्व कार्य में कुटिलता रहित व्यवहार करना ।
वर्ण संज्वलनता विनय क्या है ? वर्ण संज्वलनता विनय चार प्रकार से बताया है - वीतराग वचन तत्पर गणि और गण के गुण की प्रशंसा करना, गणी-गण के निंदक को निरुत्तर करना, गणी गण के गुणगान करनेवाले को प्रोत्साहित करना, खुद बुझुर्ग की सेवा करना, यह है वर्ण संज्वलनता विनय ।
भार प्रत्यारोहणता विनय क्या है ? भार प्रत्यारोहणता विनय चार प्रकार से है - निराश्रित शिष्य का संग्रह करना, गण में स्थापित करना, नवदीक्षित को आचार और गोचरी की विधि समझाना । साधर्मिक ग्लान साधु की यथाशक्ति वैयावच्च के लिए तत्पर रहना, साधर्मिक में आपस में क्लेश-कलह होने पर राग-द्वेष रहितता से निष्पक्ष या माध्यस्थ भाव से सम्यक् व्यवहार का पालन करके उस कलह के क्षमापन और उपशमन के लिए तैयार रहे।
वो ऐसा क्यों करे ? ऐसा करने से साधर्मिक कुछ बोलेंगे नहीं, झंझट पैदा नहीं होगा, कलह-कषाय न होंगे और फिर साधर्मिक संयम-संवर और समाधि में बहुलतावाले और अप्रमत्त होकर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरेंगे। यह भार प्रत्यारोहणता विनय है।
इस प्रकार स्थविर भगवंतने निश्चय से आठ प्रकार की गणिसंपदा बताई है, उस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ
दशा-४-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 11