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________________ आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, दशाश्रुतस्कन्ध' उद्देशक/सूत्र दशा-७-भिक्षु प्रतिमा इस दशा का नाम भिक्षु-प्रतिमा है । जिस प्रकार इसके पूर्व की दशा में श्रावक-श्रमणोपासक की ११ प्रतिमा का निरूपण किया है वैसे यहाँ भिक्षु की १२ प्रतिमा बताई है । यहाँ भी प्रतिमा' शब्द का अर्थ विशिष्ट प्रतिज्ञा ऐसा ही समझना । सूत्र - ४८ हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है । इस (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा बताई है । उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा कौन-सी बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से कही बारह भिक्षु-प्रतिमा इस प्रकार है-एक मासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी, चतुर्मासिकी, पंचमासिकी, छ मासिकी, सात मासिकी, पहली सात रात्रि-दिन, दूसरी सात रात्रि-दिन, तीसरी सात रात्रि-दिन, अहोरात्रि की और एकरात्रि की। सूत्र-४९ मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते हैं । देव-मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है उसे वो सम्यक् प्रकार से सहता है । उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते हैं, अदीन भाव से सहते हैं, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है । मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी साधु को एक दत्ति भोजन या पानी को दाता दे तो लेना कल्पे । यह दत्ति भी अज्ञात कुल से, अल्पमात्रा में दूसरों के लिए बनाए हुए अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और भिखारि आदि के भिक्षा लेकर चले जाने के बाद ग्रहण करना कल्पे । और फिर यह दत्ति जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो वहाँ से लेना कल्पे । लेकिन दो, तीन, चार, पाँच व्यक्ति साथ बैठकर भोजन कर रहे हो तो वहाँ से लेना नहीं कल्पता। गर्भिणी, छोटे बच्चेवाली या बालक को दूध पीला रही हो, उसके पास से आहार-पानी की दत्ति लेना कल्पता नहीं, जिसके दोनों पाँव ऊंबरे के बाहर या अंदर हो तो उस स्त्री के पास से दत्ति लेना न कल्पे परंतु एक पाँव अंदर और एक पाँव बाहर हो तो उसके हाथ से लेना कल्पता है। मगर यदि वो देना न चाहे तो उसके हाथ से लेना न कल्पे । मासिकी भिक्षु प्रतिमा धारण किए हुए साधु को आहार लाने के तीन समय बताये हैं-आदि, मध्य और अन्त, जो भिक्षु आदि में गोचरी जावे, वह मध्य या अन्त में न जावे, जो मध्य में गोचरी जावे वह आदि या अन्त में न जावे, जो अन्त में गोचरी जावे वो आदि या मध्य में न जावे। मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी साधु को छह प्रकार से गोचरी बताई है । पेटा, अर्धपेटा, गौमूत्रिका, पतंग वीथिका, शम्बूकावर्ती, गत्वाप्रत्यागता । इन छह प्रकार की गोचरी में से कोई एक प्रकार की गोचरी का अभिग्रह लेकर प्रतिमाधारी साधु को भिक्षा लेना कल्पता है। जिस ग्राम यावत् मडंब में एकमासिकी भिक्षुप्रतिमा धारक साधु को यदि कोई जानता हो तो उसको वहाँ एक रात्रि रहना कल्पे, यदि कोई न जानता हो तो एक या दो रात्रि रहना कल्पे, परंतु यदि वह उससे ज्यादा निवास करे तो वह भिक्षु उतने दिनों के दीक्षापर्याय का छेद या परिहार तप का भागी होता है। मासिकी भिक्षु प्रतिमाधारक साधु को चार प्रकार की भाषा बोलना कल्पता है-याचनी, पृच्छनी, अनुज्ञापनी तथा पृष्ठव्याकरणी। ___ मासिकी भिक्षुप्रतिमा प्रतिपन्न साधु को तीन प्रकार के उपाश्रयों की प्रतिलेखना करना, आज्ञा लेना अथवा वहाँ निवास करना कल्पे-उद्यानगृह, चारों ओर से ढ़का हुआ न हो ऐसा गृह, वृक्ष के नीचे रहा हुआ गृह । भिक्षु प्रतिमाधारक साधु को तीन प्रकार के संस्तारक की प्रतिलेखना, आज्ञा लेना एवं ग्रहण करना कल्पता है-पृथ्वीशिला, काष्ठपाट, पूर्व से बिछा हुआ तृण । मासिकी भिक्षुप्रतिमा धारक साधु को उपाश्रय में कोई स्त्री-पुरुष आकर अनाचार का आचरण करता दिखाई दे तो उस उपाश्रय में आना या जाना न कल्पे, वहाँ कोई अग्नि प्रज्वलित हो जाए या अन्य कोई प्रज्वलित मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 19
SR No.034705
Book TitleAgam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 37, & agam_dashashrutaskandh
File Size2 MB
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