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आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार'
उद्देशक/सूत्र
उद्देशक-५ सूत्र - १२७-१२८
प्रवर्तिनी साध्वी को गर्मी और शीतकाल में खुद के साथ दो साध्वी का विचरना न कल्पे, तीन हो तो कल्पे। सूत्र- १२९-१३०
गणावच्छेदणी साध्वी का शेष काल में खुद के साथ तीन को विचरना न कल्पे, चार को कल्पे। सूत्र- १३१-१३४
प्रवर्तिनी को वर्षावास यानि चौमासी रहना खुद के सहित तीन साध्वी को और गणावच्छेदणी को चार साध्वी को न कल्पे, लेकिन कुल चार साध्वी हो तो प्रवर्तिनी को ओर पाँच साध्वी हो तो गणावच्छेदणी को कल्पे । सूत्र - १३५-१३६
वो गाँव यावत् संनिवेश के लिए कईं प्रवर्तिनी को खुद के सहित तीन को, कईं गणावच्छेदणी को खुद के सहित चार को शेषकाल में अन्योन्य एक एक की निश्रा में विचरना कल्पे, वर्षावास रहना हो तो कईं प्रवर्तिनी हो तो खुद के साथ चार को और कईं गणावच्छेदणी हो तो पाँच की अन्योन्य निश्रा में रहना कल्पे । सूत्र - १३७-१३८
एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हुए या वर्षावास में रहे साध्वी जिन्हें आगे करके विचरते हो तो बड़े साध्वी शायद काल करे तो उस समुदाय में रहे दूसरे किसी उचित साध्वी को वडील स्थापित करके उसकी आज्ञा में रहे, यदि वडील की तरह वैसे कोई उचित न मिले और अन्य साध्वी आचार-प्रकल्प से अज्ञान हो तो एक रात का अभिग्रह लेकर, जिन दिशा में मांडली की अन्य साध्वी हो वहाँ जाना कल्पे जो कि वहाँ विहार निमित्त से रहना न कल्पे लेकिन बीमारी आदि की कारण से रहना कल्पे ।
कारण पूरा होने पर यदि किसी दूसरे साध्वी कहे कि हे आर्या ! एक या दो रात्रि यहाँ रहो तो रहना कल्पे, उसके अलावा जितनी रात रहे उतना छेद या परिहार तप आता है सूत्र-१३९-१४०
प्रवर्तिनी साध्वी बीमारी आदि कारण से या मोह के उदय से चारित्र छोड़कर (मैथुन अर्थ) देशान्तर जाए तब अन्य को ऐसा कहे कि मैं काल करूँ तब या मेरे बाद मेरी पदवी इस साध्वी को देना । यदि वो उचित लगे तो पदवी दे, उचित न लगे तो न दे । उसे समुदाय में अन्य कोई योग्य लगे तो उसे पदवी दे, यदि कोई उचित न लगे तो पहले कहे गए अनुसार पदवी दे।
ऐसा करने के बाद कोई साध्वी ऐसा कहे कि हे आर्या ! तुम्हारा यह पदवी दोषयुक्त है इसलिए उसे छोड़ दो तब वो साध्वी यदि पद छोड़ने के लिए प्रवृत्त न हो तो जितने दिन उनकी पदवी रहे उतने दिन का सबको छेद या तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - १४१-१४२
दीक्षा आश्रित करके नए या तरुण साधु या साध्वी हो उसे आचार प्रकल्प-निसीह अध्ययन भूल जाए तो उसे पूछो कि हे आर्य ! किस कारण से तुम आचार प्रकल्प अध्ययन भूल गए, बीमारी से या प्रमाद से?
___ यदि वो ऐसा कहे कि बीमारी से नहीं लेकिन प्रमाद से भूल गए तो उसे जावज्जीव के लिए पदवी मत देना। यदि ऐसा कहे कि बीमारी से भूल गए प्रमाद से नहीं तो फिर से पाठ दो और पदवी भी दो लेकिन यदि वो पढूँगा ऐसा कहकर पढ़ाई न करे या पहले का याद न करे तो उसे पदवी देना न कल्पे । सूत्र - १४३-१४४
स्थविर साधु उम्र होने से आचार प्रकल्प अध्ययन भूल जाए तब यदि फिर से अध्ययन याद करे तो उसे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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