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आगम सूत्र ३६, छेदसूत्र-३, 'व्यवहार'
उद्देशक/सूत्र आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना कल्पे ।
यदि उसे याद न आए तो पदवी देना-धारण करना न कल्पे, वो स्थविर यदि शक्ति हो तो बैठे-बैठे आचार प्रकल्प याद करे और शक्ति न हो तो सोते-सोते या बैठकर भी याद करे । सूत्र - १४५-१४६
यदि साधु-साध्वी सांभोगिक हो (गोचरी-शय्यादि उपधि आपस में लेने-देने की छुट हो वैसे एक मांडली वाले सांभोगिक कहलाते हैं ।) उन्हें कोई दोष लगे तो अन्योन्य आलोचना करना कल्पे, यद वहाँ कोई उचित आलोचना दाता हो तो उनके पास से आलोचना करना कल्पे ।
यदि वहाँ कोई उचित न हो तो आपस में आलोचना करना कल्पे, लेकिन वो सांभोगिक साधु आलोचना करने के बाद एक दूसरे की वैयावच्च करना न कल्पे । यदि वहाँ कोई दूसरा साधु हो तो उनसे वैयावच्च करवाए । यदि न हो तो बीमारी आदि की कारण से आपस में वैयावच्च करवाए। सूत्र-१४७
साधु या साध्वी को रात में या संध्या के वक्त लम्बा साँप डॅस ले तब साधु स्त्री के पास या साध्वी पुरुष से दवाई करवाए ऐसा अपवाद मार्ग में स्थविर कल्पी को कल्पे । ऐसे अपवाद का सेवन करनेवाला स्थविर कल्पी को परिहार तप प्रायश्चित्त भी नहीं आता । यह स्थविर कल्प का आचार कहा।
जिनकल्पी को इस तरह अपवाद मार्ग का सेवन न कल्पे, यह आचार जिनकल्पी का बताया।
उद्देशक-५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(व्यवहार)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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