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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, 'निशीथ'
उद्देशक/सूत्र करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ५९१-५९६
जो साधु-साध्वी राजा आदि को दूसरे राजादि पर विजय पाने के लिए जाता हो, वापस आता हो, वापस आने के वक्त अशन, पान, खादिम, स्वादिम ग्रहण करने जाए-भेजे या जानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५९७
जो साधु-साध्वी राजा आदि के महाभिषेक के अवसर पर वहाँ प्रवेश करे या बाहर नीकले, वैसा दूसरों के पास करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५९८
राजा, ग्रामपति, शुद्धवंशीय, कुल परम्परा के अभिषेक पाए हुए (राजा आदि के चंपा, मथुरा, वाराणसी, सावत्थी, साकेत, कांपिल्य, कौशाम्बी, मिथिला, हस्तिनापुर, राजगृही ये दस बड़ी राजधानी) कहलाती है । मानी जाती है । प्रसिद्ध है । वहाँ एक महिने में दो-तीन बार जो साधु-साध्वी जाए या वहाँ से बाहर नीकले, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित करे या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र- ५९९-६०७
जो साधु-साध्वी, राजा आदि के अशन आदि आहार कि जो दूसरों के निमित्त से जैसे कि, क्षत्रिय, राजा, खंड़िया राजा, राजसेवक, राजवंशज के लिए किया हो उसे ग्रहण करे, (उसी तरह से) राजा आदि के नर्तक, कच्छुक (रज्जुनर्तक), जलनर्तक, मल्ल, भाँड़, कथाकार, कुदक, यशोगाथक, खेलक, छत्रधारक, अश्व, हस्ति, पाड़ा, बैल, शेर, बकरे, मृग, कुत्ते, शुकर, सूवर, चीडिया, मूर्ये, बंदर, तितर, वर्तक, लावक, चील्ल, हंस, मोर, तोता (आदि) को पोषने के लिए बनाया गया, अश्व या हस्ति पुरुषक अश्व या हस्ति के परिमार्जक, अश्व या हस्ति आरोहक सचिव आदि, पगचंपी करनेवाला, मालीश कर्ता, उद्वर्तक, मार्जनकर्ता, मंड़क, छत्रधारक, चामर धारक, आभरण भाँड़ के धारक, मंजुषा धारक, दीपिका धारक, धनुर्धारक, शस्त्रधारक, भालाधारक, अंकुशधारक, खसी किए गए अन्तःपुररक्षक, द्वारपाल, दंडरक्षक, कुब्ज, किरातिय, वामन, वक्रकायी, बर्बर, बकुशिल, यावनिक, पल्हविक, इसिनिक, लासिक, लकुशिक, सिंहाली, पुलिन्दी, मुरन्डी, पक्कणी, भिल्ल, पारसी (संक्षेप में कहा जाए तो किरात से लेकर पारस देश में पैदा होनेवाले यह सभी राजसेवक)
ऊपर कहे अनुसार किसी के भी लिए तैयार किए गए अशन, पान, खादिम, स्वादिम को किसी साधुसाध्वी ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
इस प्रकार उद्देशक-९ में बताए अनुसार किसी कृत्य करे-करवाए-करनेवाले की अनुमोदना करे तो 'चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक' प्रायश्चित्त आता है । जिसे 'गुरु चौमासी' प्रायश्चित्त भी कहते हैं।
उद्देशक-९-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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