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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र उद्देशक-९ "निसीह'' सूत्र के इस उद्देशक में ५८० से ६०७ यानि कि २८ सूत्र हैं । उसमें से किसी भी दोष का त्रिविधे सेवन करनेवाले को चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं कि जो 'गुरु चौमासी' के नाम से भी पहचाना जाता है वो प्रायश्चित्त आता है। सूत्र - ५८०-५८४
जो साधु-साध्वी राजपिंड़ (राजा के वहाँ से अशन आदि) ग्रहण करे, राजा के अंतःपुर में जाए, अंतःपुर रक्षिका को ऐसा कहे कि हे आयुष्मति ! राजा अंतःपुर रक्षिका !' हमें राजा के अंतःपुर में गमन-आगमन करना कल्पता नहीं । तू यह पात्र लेकर राजा के अंतःपुर में से अशन-पान-खादिम-स्वादिम नीकालकर ला और मुझे दे (ऐसे अंतःपुर से आहार मंगवाए), कोई साधु-साध्वी शायद ऐसा न कहे, लेकिन अन्तःपुर रक्षिका ऐसे बोले कि, "हे आयुष्मान् श्रमण ! तुम्हें राजा के अंत:पुर में आवागमन कल्पता नहीं, तो तुम्हारा आहार ग्रहण करने का यह पात्र मुझे दो, मैं अंतःपुरमें अशन-आदि आहार पास लाकर तुम्हें दूँ ।' यदि वो साधु-साध्वी उसका यह वचन स्वीकार करे, ऐसे कथन अनुसार किसी दोष का सेवन करे, करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५८५
जो साधु-साध्वी, राजा, क्षत्रिय, शुद्धवंशीय क्रम से राज्य अभिषेक पानेवाला राजा आदि के द्वारपाल, पशु, नौकर, बली, क्रितक, अश्व, हाथी, मुसाफरी, दुर्भिक्ष, अकाल, भिक्षु, ग्लान, अतिवृष्टि पीड़ित, महमान इन सबके लिए तैयार किए गए या रखे गए भोजन को ग्रहण करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-५८६
जो साधु-साध्वी राजा, क्षत्रिय, शुद्रवंशीय यह छह दोषों को जाने बिना, पूछे बिना, चार या पाँच रात्रि गृहपति कुल में भिक्षार्थ हेतु प्रवेश या निष्क्रमण करे, वे स्थान हैं-कोष्ठागार, भाण्डागार, पाकशाला, खीरशाला, गंजशाला और रसोई गृह । तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५८७-५८८
जो साधु-साध्वी राजा आदि के नगर प्रवेश या क्रीड़ा आदि महोत्सव के निर्गमन अवसर पर सर्वालंकारविभूषित रानी आदि को देखने की ईच्छा से एक कदम भी चलने के लिए केवल सोचे, सोच करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र-५८९
जो साधु-साध्वी राजा आदि के मृगया (शिकार), मछलियाँ पकड़ना, शरीर (दूसरा मतलब मुंग आदि की फली) खाने के लिए, जिस क्षेत्र में जाते हो तब रास्ते में खाने के लिए लिया गया आहार ग्रहण करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त । सूत्र - ५९०
जो साधु-साध्वी राजा आदि के अन्य अशन आदि आहार में से किसी भी एक शरीर पुष्टिकारक, मनचाही चीज देखकर उसकी जो पर्षदा खड़ी न हुई हो (यानि कि पूरी न हुई हो), एक भी आदमी वहाँ से न गुज़रा हो, सभी वहाँ से चले गए न हो उसके अशन आदि आहार ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त, दूसरी बात ये भी जानना कि राजा आदि कहाँ निवास करते हैं । उस संबंध से जो साधु-साध्वी (जहाँ राजा का निवास हो), उसके पास ही का घर, प्रदेश, पास की शुद्ध भूमि में विहार, स्वाध्याय, आहार, मल-मूत्र, परिष्ठापन, सत्पुरुष आचरण न करे वैसा कृत्य, अश्लिल कृत्य, साधु पुरुष को योग्य न हो वैसी कथा कहे, इसमें से किसी आचरण खुद
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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