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आगम सूत्र ३४, छेदसूत्र-१, निशीथ'
उद्देशक/सूत्र हस्ति, मंत्रणा, गुप्तकार्य, राझ या मैथुन की शाला में जाए और अशन आदि आहार ग्रहण करे, राजा आदि के यहाँ रखे गए दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, गुड़, मोरस, शक्कर, मिश्री या ऐसे दूसरे किसी भी भोजन को ग्रहण करे, कौए आदि को फेंकने के खाने के बाद दूसरों को देने के - अनाथ को देने के - याचक को देने के - गरीबों को देने को भोजन को ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
इस तरह उद्देशक-८ में कहे हुए किसी भी दोष का खुद सेवन करे, अन्य से सेवन करवाए - वे दोष सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो चातुर्मासिक परिहारस्थान अनुद्घातिक प्रायश्चित्त आता है - जिसे 'गुरु चौमासी'' प्रायश्चित्त भी कहते हैं।
उद्देशक-८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(निशीथ)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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