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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र - १९०
इस के ऊपर सभी विमान आकाशान्तर प्रतिष्ठित है। इस तरह ऊर्ध्वलोक के विमान की आधारविधि बताई सूत्र - १९१-१९२
भवनपति और व्यंतर देव में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या होती है । ज्योतिष्क, सौधर्म और ईशान देव में तेजोलेश्या होती है । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होते हैं । उनके ऊपर के देव में शुक्ल लेश्या होती है। सूत्र-१९३
सौधर्म और ईशान दो कल्पवाले देव का वर्ण तपे हए सोने जैसा, सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक के देव का वर्ण पद्म जैसा श्वेत और उसके ऊपर के देव का वर्ण शुक्ल होता है । सूत्र-१९४-१९६
भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की ऊंचाई सात हाथ जितनी होती है । हे सुंदरी ! अब ऊपर के कल्पपति देव की ऊंचाई सुन । सौधर्म और ईशान की सात हाथ प्रमाण-उसके ऊपर के दो-दो कल्प समान होते हैं
और एक-एक हाथ प्रमाण नाप कम होता जाता है । ग्रैवेयक के दो हाथ प्रमाण और अनुत्तर विमानवासी की ऊंचाई एक हाथ प्रमाण होती है। सूत्र-१९७
एक कल्प से दूसरे कल्प के देव की स्थिति एक सागरोपम से अधिक होती है और उसकी ऊंचाई उससे ११ भाग कम होती है। सूत्र - १९८
विमान की ऊंचाई और उसकी पृथ्वी की चौड़ाई उन दोनों का प्रमाण ३२०० योजन होता है। सूत्र - १९९-२०२
भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की कामक्रीड़ा शारीरिक होती है । हे सुंदरी ! अब तू कल्पपति की कामक्रीड़ा विधि सुन । सौधर्म और ईशान कल्प में जो देव हैं उसकी कामक्रीड़ा शारीरिक होती है । सनत्कुमार और माहेन्द्र की स्पर्श के द्वारा होती है । ब्रह्म और लांतक के देव की चक्षु द्वारा होती है । महाशुक्र और सहस्रार देव की कामक्रीड़ा श्रोत्र (कान) द्वारा होती है । आणतप्राणत, आरण, अच्युत कल्प के देव की मन से होती है, और इसके ऊपर के देव की कामक्रीड़ा नहीं होती। सूत्र - २०३
गोशीर्ष, अगरु, केतकी के पान, पुन्नाग के फूल, बकुल की सुवास, चंपक और कमल की खुशबू और तगर आदि की खुशबू देवता में होती है। सूत्र - २०४
यह गन्धविधि संक्षेप में उपमा द्वारा कही है । देवता नजर से स्थिर और स्पर्श की अपेक्षा में सुकुमार होते
सूत्र - २०५-२०७
ऊर्ध्वलोक में विमान की गिनती ८४९७०२३ है । उसमें पुष्प आकृतिवाले ८४८९१५४ हैं । श्रेणीबद्ध विमान ७८७४ हैं । बाकी के विमान पुष्पकर्णिका आकृतिवाले हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (देवेन्द्रस्तव). आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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