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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र - २०८
विमान की पंक्ति का अंतर निश्चय से असंख्यात योजन और पुष्पकर्णिका आकृतिवाले विमान का अन्तर संख्यात-संख्यात योजन बताया है। सूत्र-२०९
आवलिका प्रविष्ट विमान गोल, त्रिपाई और चतुष्कोण होते हैं । जबकि पुष्पकर्णिका की संरचना अनेक आकार की होती है। सूत्र - २१०
गोल विमान कंकणाकृति जैसे, त्रिपाई शींगोड़े जैसे और चतुष्कोण पासा के आकार के होते हैं । सूत्र-२११
प्रथम वृत्त विमान, बाद में त्रीकोन, बाद में चतुरस्र फिर ईसी क्रम से विमान होते हैं । सूत्र - २१२
विमान की पंक्ति वर्तुलाकार पर वर्तुलाकार, त्रिपाई पर त्रिपाई, चतुष्कोण पर चतुष्कोण होता है। सूत्र - २१३
सभी विमान का अवलम्बन रस्सी की तरह ऊपर से नीचे एक कोने से दूसरे तक समान होते हैं। सूत्र - २१४
सभी वर्तुलाकार विमान प्राकार से घिरे हुए और चतुष्कोण विमान चारों दिशा में वेदिकायुक्त बताए हैं। सूत्र - २१५
जहाँ वर्तुलाकार विमान होते हैं वहाँ त्रिपाई विमान की वेदिका होती है । बाकी के पाँच हिस्से में प्राकार होता है। सूत्र - २१६
सभी वर्तुलाकार विमान एक द्वारवाले होते हैं । त्रिपाई विमान तीन और चतुष्कोण विमान में चार दरवाजे होते हैं। यह वर्णन कल्पपति के विमान का जानना । सूत्र-२१७
भवनपति देव के ७ करोड ७२ लाख भवन होते हैं । यह भवन का संक्षिप्त कथन कहा। सूत्र - २१८
तिmलोक में पैदा होनेवाले वाणव्यंतर देव के असंख्यात भवन होते हैं । उससे संख्यात गुने अधिक ज्योतिषी देव के होते हैं। सूत्र - २१९
विमानवासी देव अल्प हैं । उससे व्यंतर देव असंख्यात गुने हैं । उससे संख्यात गुने अधिक ज्योतिष्क देव होते हैं। सूत्र-२२०
सौधर्म देवलोक में देवीओं के अलग विमान की गिनती छ लाख होती है । और ईशान कल्प में चार लाख होती है। सूत्र - २२१
पाँच तरह के अनुत्तर देव गति, जाति और दृष्टि की अपेक्षा से श्रेष्ठ है और अनुपम विषयसुख वाले हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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