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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र-१५४
सूर्य से चन्द्र और चन्द्र से सूर्य का अन्तर ५० हजार योजन से कम नहीं होता। सूत्र - १५५
चन्द्र का चन्द्र से और सूर्य का सूर्य से १ लाख योजन होता है । सूत्र - १५६
चन्द्रमा से सूर्य अंतरित है और प्रदीप्त सूर्य से चन्द्रमा अंतरीत है। वे अनेक वर्ण के किरणवाला है। सूत्र-१५७
एक चन्द्र परिवार के ८८ ग्रह और २८ नक्षत्र होते हैं । सूत्र-१५८
६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारागण होता है। सूत्र - १५९-१६०
सूर्य देव की आयुदशा १ हजार वर्ष पल्योपम और चन्द्र देव की आयु दशा १ लाख वर्ष पल्योपम से अधिक, ग्रह की १पल्योपम, नक्षत्र की आधा पल्योपम और तारों की १/४ पल्योपम कहा है। सूत्र - १६१
ज्योतिष्क देव की जघन्यदशा पल्योपम का आठवा भाग और उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक लाख पल्योपम वर्ष कही है। सूत्र-१६२
मैंने भवनपति, बाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की दशा कही है। अब महान ऋद्धिवाले १२ कल्पपति इन्द्र का विवरण करूँगा। सूत्र-१६३
पहले सौधर्मपति, दूसरे ईशानपति, तीसरे सनतकुमार, चौथे महिन्द्र । सूत्र - १६४
पाँचवे ब्रह्म, छठे लांतक, सातवे महाशुक्र, आठवे सहस्रार । सूत्र - १६५
नौवें आणत, दशवे प्राणत, ग्यारहवे आरण और बारवें अच्युत इन्द्र होते हैं।
सूत्र-१६६
इस तरह से यह बारह कल्पपति इन्द्र कल्प के स्वामी कहलाए उनके अलावा देव को आज्ञा देनेवाला दूसरा कोई नहीं है। सूत्र - १६७
इस कल्पवासी के ऊपर जो देवगण है वो स्वशासित भावना से पैदा होते हैं । क्योंकि ग्रैवेयक में दास भाव या स्वामी भाव से उत्पत्ति मुमकीन नहीं है। सूत्र - १६८
जो सम्यकदर्शन से पतित है लेकिन श्रमणवेश धारी हैं उस की उत्पत्ति उत्कृष्ट रूपमें ग्रैवेयक तक होती है सूत्र - १६९
यहाँ सौधर्म कल्पपति शक्र महानुभव के ३२ लाख विमान हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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