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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र-१४१
उसका ताप क्षेत्र कलम्बुक पुष्प संस्थान समान होता है और चन्द्र-सूर्य का तापक्षेत्र भीतर में संकुचित और बाहर से विस्तृत होता है। सूत्र-१४२
किस कारण से चन्द्रमा बढ़ता है और किस कारण से चन्द्रमा क्षीण होता है ? या किस कारण से चन्द्र की ज्योत्सना और कालिमा होती है ? सूत्र-१४३
राहु का काला विमान हमेशा चन्द्रमा के साथ चार अंगुल नीचे गमन करते हैं । सूत्र-१४४
शुक्लपक्ष में चन्द्र का ६२-६२ हिस्सा राहु से अनावृत्त होकर हररोज बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में उतने ही वक्त में राहु से आवृत्त होकर कम होता है । सूत्र-१४५
चन्द्रमा के पंद्रह हिस्से क्रमिक राहु के पंद्रह हिस्सों से अनावृत्त होते जाते हैं और फिर आवृत्त होते जाते हैं। सूत्र-१४६
उस कारण से चन्द्रमा वृद्धि को और ह्रास को पाते हैं । उसी कारण से ज्योत्सना और कालिमा आते हैं। सूत्र - १४७, १४८
मानवलोक में पैदा होनेवाले और संचरण करनेवाले चन्द्र, सूर्य, ग्रह-समूह आदि पाँच तरह के ज्योतिष्क देव होते हैं।
मानवलोक बाहर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तारे और नक्षत्र हैं उसकी गति भी नहीं और संचरण भी नहीं होता इसलिए उसे स्थिर ज्योतिष्क जानना । सूत्र - १४९-१५०
यह चन्द्र-सूर्य जम्बूद्वीप में दो-दो, लवण समुद्र में चार-चार, धातकीखंड में बारह-बारह होते हैं । यानि कि जम्बूद्वीप में दुगुने, लवणसमुद्र में चार गुने और धातकीखंड में बारह गुने होते हैं । सूत्र - १५१
घातकी खंड के आगे के क्षेत्र में मतलब द्वीप समूह में सूर्य-चन्द्र की गिनती उसके पूर्व द्वीप समूह की गिनती से तीन तीन गुना करके और उसमें पूर्व के चन्द्र और सूर्य की गिनती बढ़ाकर मानना चाहिए । (जैसे कि कालोदधि समुद्र में ४२-४२ चन्द्र-सूर्य विचरण करते हैं, वो इस तरह पूर्व के लवणसमुद्र में १२-१२ हैं तो उसके तीन गुने यानि ३६ और उसमें पूर्व के जम्बूद्वीप दो और लवण समुद्र के चार चन्द्र सूर्य शामील करने से ४२ चन्द्र सूर्य होते हैं, इस तरह से आगे-आगे की गिनती होती है। सूत्र-१५२
यदि तू द्वीप समुद्र में नक्षत्र, ग्रह, तारों की गिनती जानने की ईच्छा रखती हो तो एक चन्द्र परिवार की गिनती से दुगुने करने से वो द्वीप समुद्र के नक्षत्र, ग्रह और तारों की गिनती जान सकती है। सूत्र - १५३
मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र और सूर्य अव्यवस्थित हैं, वहाँ चन्द्रमा अभिजित नक्षत्र के योगवाला और सूर्य पुष्य नक्षत्र के योगवाला होता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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