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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' सूत्र - ११३-११७
घातकी खंड में १२ चन्द्र, १२ सूर्य, ३३६ नक्षत्र, १०५६ ग्रह और ८०३७०० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं ।
कालोदधि समुद्र में तेजस्वी किरण से युक्त ४२ चन्द्र, ४२ सूर्य, ११७६ नक्षत्र, ३६९६ ग्रह और २८१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं। सूत्र - ११८-१२३
पुष्करवरद्वीप में १४४ चन्द्र, १४४ सूर्य, ४०३२ नक्षत्र, १२६३२ ग्रह, ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण विचरण करते हैं । अर्धपुष्करवरद्वीप में ७२ चन्द्र, ७२ सूर्य, ६३३६ महाग्रह, २०१६ नक्षत्र और ४८२२२०० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र - १२४-१२६
समस्त मानवलोक को १३२ चन्द्र, १३२ सूर्य, ११६१६ महाग्रह, ३६९६ नक्षत्र और ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण प्रकाशित करते हैं। सूत्र-१२७
संक्षेप में मानवलोक में यह नक्षत्र समूह कहा है । मानवलोक की बाहर जिनेन्द्र द्वारा असंख्य तारे बताएं हैं सूत्र- १२८
इस तरह मानवलोक में जो सूर्य आदि ग्रह बताएं हैं वो कदम्ब वृक्ष के फूल की समान विचरण करते हैं । सूत्र - १२९
इस तरह मानवलोक में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र बताएं हैं जिसके नाम और गोत्र सामान्य बुद्धिवाले मानव नहीं कह सकते। सूत्र-१३०-१३५
मानवलोक में चन्द्र और सूर्य की ६६ पीटक है और एक पीटक में दो चन्द्र और सूर्य हैं । नक्षत्र आदि की ६६ पीटक और एक पीटक में ५६ नक्षत्र हैं । महाग्रह ११६ है । इसी तरह मानवलोक में चन्द्र-सूर्य की ४-४ पंक्ति है। हर एक पंक्ति में ६६ चन्द्र, ६६ सूर्य है । नक्षत्र की ५६ पंक्ति है और हर एक पंक्ति में ६६-६६ नक्षत्र है । ग्रह की ७६ पंक्ति होती है हरएक में ६६-६६ ग्रह होते हैं। सूत्र-१३६
चन्द्र, सूर्य और ग्रह समूह अनवरित रूप से उस मेरु पर्वत की परिक्रमा करते हुए सभी मेरु पर्वत की मंडलाकार प्रदक्षिणा करते हैं। सूत्र-१३७
उसी तरह नक्षत्र और ग्रह के नित्य मंडल भी जानने वो भी मेरु पर्वत की परिक्रमा मंडल के आकार से करते हैं। सूत्र - १३८
चन्द्र और सूर्य की गति ऊपर नीचे नहीं होती लेकिन अभ्यंतर-बाह्य तिरछी और मंडलाकार होती है। सूत्र-१३९
चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र आदि ज्योतिष्क के परिभ्रमण विशेष द्वारा मानव से सुख और दुःख की गति होती है। सूत्र - १४०
यह ज्योतिष्क देव निकट हो तो तापमान नियम से बढ़ता है और दूर हो तो तापमान कम होता है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (देवेन्द्रस्तव) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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