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आगम सूत्र ३२, पयन्नासूत्र-९, देवेन्द्रस्तव' ताराविमान का विष्कम्भ है। सूत्र- ९१
जिसका जो आयाम विष्कम्भ है उससे आधी उसकी चौड़ाई होती है । और उससे तीन गुनी अधिक परिधि होती है ऐसा जान। सूत्र - ९२-९३
चन्द्र-सूर्य विमान का वहन १६००० देव करते हैं, ग्रह विमान का वहन ८००० देव करते हैं । नक्षत्र विमान का वहन ४००० देव करते हैं और तारा विमान का वहन २००० देव करते हैं । वो देव पूर्व में सिंह, दक्षिण में महाकाय हाथी, पश्चिम में बैल और उत्तर में घोड़े के रूप में वहन करते हैं । सूत्र- ९४
___ चन्द्र-सूर्य, ग्रह-नक्षत्र और तारे एक-एक से तेज गति से चलते हैं। सूत्र-९५
चन्द्र की गति सब से कम, तारों की गति सब से तेज है। इस प्रकार ज्योतिष्क देव की गति विशेष जानना सूत्र- ९६
ऋद्धि में तारे, नक्षत्र, ग्रह, सूर्य, चन्द्र एक एक से ज्यादा ऋद्धिवान् जानना । सूत्र- ९७
सबके भीतर अभिजित नक्षत्र है, सबसे बाहर मूल नक्षत्र। ऊपर स्वाति नक्षत्र है और नीचे भरणी नक्षत्र है सूत्र-९८
निश्चय से चन्द्र सूर्य के बीच सभी ग्रह-नक्षत्र होते हैं। चन्द्र और सूर्य के बराबर नीचे और ऊपर तारे होते हैं सूत्र- ९९-१००
तारों का परस्पर जघन्य अन्तर ५०० धनुष और उत्कृष्ट फाँसला ४००० धनुष (दो गाउ) होता है । व्यवधान की अपेक्षा से तारों का फाँसला जघन्य २६६ योजन और उत्कृष्ट से १२२४२ योजन है। सूत्र-१०१
इस चन्द्रयोग की ६७ खंडित अहोरात्रि, ९ मुहर्त और २७ कला होती है। सूत्र - १०२-१०४
शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा यह छ नक्षत्र १५ मुहूर्त संयोगवाले हैं । तीनों उत्तरा नक्षत्र और पुनर्वसु, रोहिणी, विशाखा यह छ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ ४५ मुहूर्त का संयोग करते हैं । बाकी पंद्रह नक्षत्र चन्द्रमा के साथ ३० महर्त का संयोग करते हैं इस तरह चन्द्रमा के साथ नक्षत्र का योग जानना। सूत्र-१०५-१०८
अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ चार अहोरात्रि और छ मुहूर्त एक साथ गमन करते हैं । शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा यह छ नक्षत्र छ अहोरात्रि और २१ मुहूर्त तक सूर्य के साथ भ्रमण करते हैं । तीन उत्तरा नक्षत्र और पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा यह छ नक्षत्र २० अहोरात्रि और तीन मुहूर्त तक सूर्य के साथ भ्रमण करते हैं । बाकी के १५ नक्षत्र १३ अहोरात्रि और १२ मुहूर्त सूर्य के साथ भ्रमण करते हैं। सूत्र-१०९-११२
दो चन्द्र, दो सूर्य, ५६ नक्षत्र, १७६ ग्रह वो सभी जम्बूद्वीप में विचरण करते हैं । १३३९५० कोड़ाकोड़ी तारागण जम्बूद्वीप में होते हैं । लवण समुद्र में ४ चन्द्र, ४ सूर्य, ११२ नक्षत्र और ३५२ ग्रह भ्रमण करते हैं और २६७९०० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (देवेन्द्रस्तव)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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