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Agam Sutra 28, Paryannasūtra-5, 'Tandulavaicārika'
Sūtra-141
Your mouth is fragrant with mouth freshener, your limbs are fragrant with perfumed substances, and your hair is fragrant with scented liquids during bathing, etc. So, what is your own natural fragrance?
Sūtra-142
O man! The dirt of the eyes, ears, nose, phlegm, impurities, and urine - this is your own natural odor.
Sūtra-143
Desire, attachment, and delusion - through various types of ropes, a lot has been said in praise of these women by numerous excellent poets. In reality, their nature is as follows:
Women are by nature crooked, addicted to sweet speech, as winding as a mountain river in loving, mistress of a thousand faults, causing sorrow, destroying hair, a slaughterhouse for men, destroying modesty, a mass of impropriety, a home of sin, a mine of enmity, a home of sorrow, violating propriety, a home of passion, the abode of the wicked, the mother of infatuation, destroying knowledge, destroying celibacy, an obstacle to religion, the enemy of the ascetic, a blemish for the virtuous, a resting place for passion, an obstruction on the path of liberation, the abode of poverty - when angry, like a venomous snake; when under the influence of lust, like an intoxicated elephant; due to an evil heart, like a tigress; with a blackened heart, like a well covered with grass; binding through hundreds of magical treatments, like a magician; despite being difficult to understand, like an ideal image; in burning the moral character, like the fire of a forest; unstable in mind, like an uneven mountain path; crooked like an internal wound; unreliable like the black snake of the heart.
Deceitful and hypocritical, like the deluge; loving for a moment like the redness of dusk; fickle in nature like the waves of the ocean; hard to transform like a fish; in fickleness, like a monkey; leaving nothing behind like death; deadly like time; having hands like the noose of Varuna; following the lower, like water; miserly, with hands turned upside down; as terrifying as hell; ill-mannered like a donkey; untamable like an evil horse; happy for a moment and angry the next, like a child; hard to enter, like the darkness; an inappropriate refuge, like the poison creeper; diving into the well with anger, like an evil crocodile; displaced; unfit for praise, like the rich; first appearing pleasant, but later giving bitter fruit, like the Kimpāka fruit; alluring like an empty fist without substance; causing disturbance like seizing the flesh; with unshakable pride and burnt morality, like a bundle of burnt grass; foul-smelling like Ariṣṭa; cheating on morality like a counterfeit coin; protected from suffering like an angry person; extremely sorrowful; condemned; mischievous; shallow; untrustworthy; unstable; protected from sorrow; unpleasant; harsh; punitive; intoxicated with beauty and fortune; crooked-hearted like the movement of a snake; causing fear like a journey in the forest; creating discord in the family and among friends; exposing the faults of others.
Ungrateful, destroying virility, abducting in solitude like a Kol, fickle, producing passion with red lips like a pot heated by fire, with a broken heart within, a bondage without a rope, a forest without a tree, a home of fire, an invisible Vaitaraṇī, an incurable disease, raving without separation, an unexpressed affliction, confusing the mind in sexual play, burning the whole body, thundering without clouds, like a waterless stream and constantly roaring like the ocean - this is a woman. In this way, many names are assigned to women. Through countless methods and in various ways, they increase the lust of men and make them the object of bondage and slaughter. No other enemy of man is like a woman. Therefore, 'woman', through various actions and arts, enchants and intoxicates men, and thus creates great conflict. This is the 'Tandulavaicārika' Agam Sutra, translated into Hindi by Muni Deepratan Sagara.
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आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक'
सूत्रसूत्र-१४१
तुम्हारा मुँह मुखवास से, अंग-प्रत्यंग अगर से, केश स्नान आदि के समय में लगे हुए खुशबूदार द्रव्य से खुशबूदार हैं । तो इसमें तुम्हारी अपनी खुशबू क्या है ? सूत्र - १४२
हे पुरुष ! आँख, कान, नाक का मैल और श्लेष्म, अशुचि और मूत्र यही तो तुम्हारी अपनी गन्ध है। सूत्र-१४३
काम, राग और मोह समान तरह-तरह की रस्सी से बँधे हजारों श्रेष्ठ कवि द्वारा इन स्त्रियों की तारीफ में काफी कुछ कहा गया है । वस्तुतः उनका स्वरूप इस प्रकार है । स्त्री स्वभाव से कुटील, प्रियवचन की लत्ता, प्रेम करने में पहाड़ की नदी की तरह कुटील, हजार अपराध की स्वामिनी, शोक उत्पन्न करवानेवाली, बाल का विनाश करनेवाली, मर्द के लिए वधस्थान, लज्जा को नष्ट करनेवाली, अविनयकी राशि, पापखंड़ का घर, शत्रुता की खान, शोक का घर, मर्यादा तोड़ देनेवाली, राग का घर, दुराचारी का निवास स्थान, संमोहन की माता, ज्ञान को नष्ट करनेवाली, ब्रह्मचर्य को नष्ट करनेवाली, धर्म में विघ्न समान, साधु की शत्रु, आचार संपन्न के लिए कलंक समान, रज का विश्रामगृह, मोक्षमार्ग में विघ्नभूत, दरिद्रता का आवास-कोपायमान हो तब झहरीले साँप जैसी, काम से वश होने पर मदोन्मत्त हाथी जैसी, दुष्ट हृदया होने से वाघण जैसी, कालिमां वाले दिल की होने से तृण आच्छादित कूए समान, जादूगर की तरह सेंकड़ों उपचार से आबद्ध करनेवाली, दुर्ग्राह्य सद्भाव होने के बावजूद आदर्श की प्रतिमा, शील को जलाने में वनखंड की अग्नि जैसी, अस्थिर चित्त होने से पर्वत मार्ग की तरह अनवस्थित, अन्तरंग व्रण की तरह कुटील, हृदय काले सर्प की तरह अविश्वासनीय ।
छल छद्म युक्त होने से प्रलय जैसी, संध्या की लालीमा की तरह पलभर का प्रेम करनेवाली, सागर की लहर की तरह चपल स्वभाववाली, मछली की तरह दुष्परिवर्तनीय, चंचलता में बन्दर की तरह, मौत की तरह कुछ बाकी न रखनेवाली, काल की तरह घातकी, वरुण की तरह कामपाश समान हाथवाली, पानी की तरह निम्नअनुगामिनी, कृपण की तरह उल्टे हाथवाली, नरक समान भयानक, गर्दभ की तरह दुःशीला, दुष्ट घोड़े की तरह दुर्दमनीय, बच्चे की तरह पल में खुश और पल में रोषायमान होनेवाली, अंधेरे की तरह दुष्प्रवेश विष लता की तरह आश्रय को अनुचित, कूए में आक्रोश से अवगाहन करनेवाले दुष्ट मगरमच्छ जैसी, स्थानभ्रष्ट, ऐश्वर्यवान की तरह प्रशंसा के लिए अनुचित किंपाक फल की तरह पहले अच्छी लगनेवाली लेकिन बाद में कटु फल देनेवाली, बच्चे को लुभानेवाली खाली मुठ्ठी जैसी सार के बिना, माँसपिंड़ को ग्रहण करने की तरह उपद्रव उत्पन्न करनेवाली, जले हुए घास के पूले की तरह न छूटनेवाले मान और जले हुए शीलवाली, अरिष्ट की तरह बदबूवाली, खोटे सिक्के की तरह शील को ठगनेवाली, क्रोधी की तरह कष्ट से रक्षित, अति विषादवाली, निंदित, दुरुपचारा, अगम्भीर, अविश्वसनीय, अनवस्थित, दःख से रक्षित, अरतिकर, कर्कश, दंड वैरवाली, रूप और सौभाग्य से उन्मत्त, साँप की गति की तरह कुटील हृदया, अटवी में यात्रा की तरह भय उत्पन्न करनेवाली, कल-परिवार और मित्र में फूट उत्पन्न करनेवाली, दूसरों के दोष प्रकाशित करनेवाली।
कृतघ्न, वीर्यनाश करनेवाली, कोल की तरह एकान्त में हरण करनेवाली, चंचल, अग्नि से लाल होनेवाले घड़े की तरह लाल होठ से राग उत्पन्न करनेवाली, अंतरंग में भग्नशत हृदया, रस्सी बिना का बँधन, बिना पेड़ का जंगल, अग्निनिलय, अदृश्य वैतरणी, असाध्य बीमारी, बिना वियोग से प्रलाप करनेवाली, अनभिव्यक्त उपसर्ग, रतिक्रीड़ा में चित्त विभ्रम करनेवाली, सर्वांग जलानेवाली बिना मेघ के वज्रपात करनेवाली, जलशून्य प्रवाह और सागर समान निरन्तर गर्जन करनेवाली, यह स्त्री होती है । इस तरह स्त्रियाँ की कईं नाम नियुक्ति की जाती है। लाख उपाय से और अलग-अलग तरह से मर्द की कामासक्ति बढ़ाती है और उसको वध बन्धन का भाजन बनानेवाली नारी समान मर्द का दूसरा कोई शत्रु नहीं है, इसलिए 'नारी' तरह-तरह के कर्म और शिल्प से मर्दो को मोहित करके मोह 'महिला', मर्दो को मत्त करते हैं इसलिए प्रमदा', महान कलह को उत्पन्न करती है इसलिए
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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