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________________ आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र-१०, 'पुष्पिका' अध्ययन/सूत्र अध्ययन-३-शुक्र सूत्र-५ भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह आशय प्ररूपित किया है तो तृतीय अध्ययन का क्या भाव बताया है ? ___ आयुष्मन् जम्बू ! राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । राजा श्रेणिक था । स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् नीकली । उस काल और उस समय में शुक्र महाग्रह शुक्रावतंसक विमान में शुक्र सिंहासन पर बैठा था । ४००० सामानिक देवों आदि के साथ नृत्य गीत आदि दिव्य भोगों को भोगता हुआ विचरण कर रहा था आदि । वह चन्द्र के समान भगवान के समवसरण में आया । नृत्यविधि दिखाकर वापिस लौट गया। गौतमस्वामीने श्रमण भगवान महावीर से उस की दैविक ऋद्धि आदि के अन्तर्लीन होने के सम्बन्ध में पूछा। भगवान ने कूटाकार शाला के दृष्टान्त द्वारा गौतम का समाधान किया । गौतम स्वामी ने पुनः उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा। गौतम ! उस काल और समय में वाराणसी नगरी थी । सोमिल नामक माहण था । वह धन-धान्य आदि से संपन्न-समृद्ध यावत् अपरिभूत था । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चार वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु नामक कोश का तथा सांगोपांग रहस्य सहित वेदों का सारक, वारक, धारक, पारक, वेदों के षट्-अंगों में, एवं षष्ठितंत्र में विशारद था । गणितशास्त्र, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्दशास्त्र, निरुक्तशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र तथा दूसरे बहुत से ब्राह्मण और परिव्राजको सम्बन्धी नीति और दर्शनशास्त्र आदि में अत्यन्त निष्णात था । पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे । परिषद् नीकली और पर्युपासना करने लगी। सोमिल ब्राह्मण को यह संवाद सूनकर इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ-पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करते हुए यावत् आम्रशा-लवन में विराज रहे हैं । अतएव मैं जाऊं और अर्हत् पार्श्वप्रभु के सामने उपस्थित होऊं एवं उनसे यह तथा इस प्रकार के अर्थ हेतु, प्रश्न, कारण और व्याख्या पूछू। तत्पश्चात् सोमिल घर से नीकला और भगवान की सेवा में पहुँचकर पूछा-भगवन् ! आपकी यात्रा चल रही है ? यापनीय है ? अव्याबाध है ? और आपका प्रासुक विहार हो रहा है ? आपके लिए सरिसव मास कुलत्थ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं? आप एक हैं? यावत् सोमिल संबुद्ध हुआ और श्रावक धर्म को अंगीकार करके वापिस लौट गया। तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधु दर्शन के कारण एवं निर्ग्रन्थ श्रमणों की पर्युपासना नहीं करने सेमिथ्यात्व पर्यायों के प्रवर्धमान होने से तथा सम्यक्त्व पर्यायों के परिहीयमान होने से मिथ्यात्व भाव को प्राप्त हुआ इसके बाद किसी एक समय मध्यरात्रि में अपनी कौटुम्बिक स्थिति पर विचार करते हुए उस सोमिल ब्राह्मण को यह और इस प्रकार का आन्तरिक यावत् मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ-मैं वाराणसी नगरी का रहनेवाला और अत्यन्त शुद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूँ। मैंने व्रतों को अंगीकार किया, वेदाध्ययन किया, पत्नी को लाया-कुलपरंपरा की वृद्धि के लिए पुत्रादि संतान को जन्म दिया, समृद्धियों का संग्रह किया-अर्थोपार्जन किया, पशुबंध किया, यज्ञ किए, दक्षिणा दी, अतिथिपूजा-किया, अग्नि में हवन किया-आहति दी, यप स्थापित किये, इत्यादि गृहस्थ सम्बन्धी कार्य किये। लेकिन अब मुझे यह उचित है कि कल रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित हो जाने पर, जब कमल विकसित हो जाएं, प्रभात पाण्डुर-श्वेत वर्ण का हो जाए, लाल अशोक, पलाशपुष्प, तोते की चोंच, चिरमी के अर्धभाग, बंधुजीवकपुष्प, कबूतर के पैर, कोयल के नेत्र, जसद के पुष्प, जाज्वल्यमान अग्नि, स्वर्णकलश एवं हिंगलकसमह की लालीमा से भी अधिक रक्तिम श्री से सुशोभित सूर्य उदित हो जाए और उसकी किरणों के फैलने से अंधकार विनष्ट हो जाए, सूर्य रूपी कुंकुम से विश्व व्याप्त हो जाए, नेत्रों के विषय का प्रचार होने से विकसित होनेवाला लोक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे, तब वाराणसी नगरी के बाहर बहुत से आम्र-उद्यान लगवाऊं, इसी प्रकार से मातुलिंग, बिल्व, कविठ्ठ, चिंचा और फूलों की वाटिकाएं लगवाऊं ।' मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 8
SR No.034688
Book TitleAgam 21 Pushpika Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 21, & agam_pushpika
File Size2 MB
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