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आगम सूत्र २१,उपांगसूत्र-१०, 'पुष्पिका'
अध्ययन/सूत्र
अध्ययन-२-सूर्य सूत्र-४
भदन्त ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?
आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था। श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ । जैसे भगवान की उपासना के लिए चन्द्र आया था उसी प्रकार सूर्य इन्द्र का भी आगमन हुआ यावत् नृत्य-विधियाँ प्रदर्शित कर वापिस लौट गया।
गौतम स्वामी ने सूर्य के पूर्वभव के विषय में पूछा । श्रावस्ती नाम की नगरी थी । वहाँ धन-वैभव आदि से संपन्न सुप्रतिष्ठ नामक गाथापति रहता था । वह भी अंगजित के समान यावत् धनाढ्य एवं प्रभावशाली था । वहाँ पार्श्व प्रभु पधारे । अंगजित के समान वह भी प्रव्रजित हुआ और उसी तरह संयम की विराधना करके मरण को प्राप्त होकर सूर्य-विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ।
आयुक्षय होने के अनन्तर वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा।
अध्ययन-२-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (पुष्पिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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