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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र इसी प्रकार के समझना । चन्द्रविमान कितना लम्बा-चौड़ा तथा ऊंचा है ? सूत्र-३४१ गौतम ! चन्द्रविमान ५६/६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २८/६१ योजन ऊंचा है । सूत्र-३४२ सूर्यविमान ४८/६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २४/६१ योजन ऊंचा है। सूत्र-३४३ ग्रहों, नक्षत्रों तथा ताराओं के विमान क्रमशः २ कोश, १ कोश तथा १/२ कोश विस्तीर्ण हैं | ऊंचाई उन से आधी होती है। सूत्र-३४४ भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार, चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत, सुभग, जनप्रिय, सुप्रभ, शंख के मध्यभाग, जमे हुए दही, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिर, लष्ट, प्रकोष्ठक, वृत्त, पीवर, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, तीक्ष्ण, दंष्ट्राओं प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल, अत्यन्त कोमल तालुयुक्त, घनीभूत, शहद की गुटिका सदृश पिंगल वर्ण के, पीवर, मांसल, उत्तम जंघायुक्त, परिपूर्ण, विपुल, कन्धों से युक्त, मृदु, विशद, सूक्ष्म, प्रशस्त, लक्षणयुक्त, उत्तम वर्णमय, कन्धों पर उगे अयालों से शोभित उच्छ्रित, सुनमित, सुजात, आस्फोटित, वज्रमय नखयुक्त, वज्रमय दंष्ट्रायुक्त, वज्रमय दाँतो वाले, अग्नि में तपाये हुए स्वर्णमय जिह्वा तथा तालु से युक्त, तपनीय स्वर्णनिर्मित योक्त्रक-के साथ सुयोजित, कामगम, प्रीतिगम, मनोगम, मनोरम, अमितगति, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रम से युक्त, उच्च गम्भीर स्वर से सिंहनाद करते हुए, अपनी मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा गगन-मण्डल को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार सिंहरूपधारी देव विमान के पूर्वी पार्श्व को परिवहन किये चलते हैं | चन्द्रविमान के दक्षिण में सफेद वर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त यावत् को सुशोभित करते हुए चार हजार गजरूपधारी देव विमान के दक्षिणी पार्श्व को परिवहन करते हैं । चन्द्र-विमान के पश्चिम में सफेद वर्णयुक्त, यावत् दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार वृषभ-रूपधारी देव विमान के पश्चिमी पार्श्व का परिवहन करते हैं । चन्द्र-विमान के उत्तर में श्वेतवर्णयुक्त, सौभाग्य युक्त यावत् । सुशोभित करते हए चार हजार अश्वरूपधारी देव विमान के उत्तरी पार्श्व को परिवहन करते हैं। सूत्र-३४५ चार-चार हजार सिंहरूपधारी देव, चार-चार हजार गजरूपधारी देव, चार-चार हजार वृषभरूपधारी देव तथा चार-चार हजार अश्वरूपधारी देव-कुल सोलह हजार देव सूर्य विमानों का परिवहन करते हैं । ग्रहों के विमानों का दो-दो हजार सिंहरूपधारी देव, दो-दो हजार गजरूपधारी देव, दो-दो हजार वृषभरूपधारी देव और दो-दो हजार अश्वरूपधारी देव-कुल आठ-आठ हजार देव परिवहन करते हैं। सूत्र-३४६ नक्षत्रों के विमानों का एक-एक हजार सिंहरूपधारी देव, एक-एक हजार गजरूपधारी देव, एक-एक हजार वृषभरूपधारी देव एवं एक-एक हजार अश्वरूपधारी देव-कुल चार-चार हजार देव परिवहन करते हैं । तारों के विमानों का पाँच-पाँच सौ सिंहरूपधारी देव, पाँच-पाँच सौ गजरूपधारी देव, पाँच-पाँच सौ वृषभरूपधारी देव तथा पाँच-पाँच सौ अश्वरूपधारी देव-कुल दो-दो हजार देव परिवहन करते हैं । सूत्र-३४७ उपर्युक्त चन्द्र-विमानों के वर्णन के अनुरूप सूर्य-विमान यावत् तारा-विमानों का वर्णन है । मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 101
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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