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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र-७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' वक्षस्कार/सूत्र सूत्र-३४८ भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्र गतियुक्त हैं। इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्दगतियुक्त हैं तथा तारे सबसे अधिक शीघ्रगतियुक्त हैं। सूत्र-३४९ इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों मैं कौन सर्वमहर्द्धिक है ? कौन सबसे अल्प ऋद्धिशाली हैं ? गौतम! तारों से नक्षत्र, नक्षत्रों से ग्रह, ग्रहों से सूर्य तथा सूर्यों से चन्द्र अधिक ऋद्धिशाली हैं । तारे सबसे कम ऋद्धिशाली तथा चन्द्र सबसे अधिक ऋद्धिशाली हैं। सूत्र-३५० भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारे से दूसरे तारे का कितना अन्तर है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का हैव्याघातिक और निर्व्याघातिक । एक तारे से दूसरे तारे का निर्व्याघातिक अन्तर जघन्य ५०० धनुष तथा उत्कृष्ट २ गव्यूत है। एक तारे से दूसरे तारे का व्याघातिक अन्तर जघन्य २६६ योजन तथा उत्कृष्ट १२२४२ योजन है। सूत्र-३५१ भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के इन्द्र, ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र के कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! चार -चन्द्रप्रभा, ज्योत्सनाभा, अर्चिमाली तथा प्रभंकरा । उनमें से एक-एक अग्रमहिषी का चार-चार हजार देवी-परिवार है । एक-एक अग्रमहिषी अन्य सहस्र देवियों की विकुर्वणा करने में समर्थ होती है । यों विकुर्वणा द्वारा सोलह हजार देवियाँ निष्पन्न होती हैं । भगवन् ! क्या ज्योतिष्केन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्रावतंसक विमान में चन्द्रा राजधानी में सुधर्मासभा में अपने अन्तःपुर के साथ नाट्य, गीत, वाद्य आदि का आनन्द लेता हुआ दिव्य भोग भोगने में समर्थ होता है ? गौतम ! ऐसा नहीं होता-क्योंकि-ज्योतिष्केन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में चन्द्रा राजधानी में सुधर्मासभा में माणवक नामक चैत्यस्तंभ है । उस पर वज्रमय गोलाकार सम्पुटरूप पात्रों में बहुत सी जिन-सक्थियाँ हैं । वे चन्द्र तथा अन्य बहत से देवों एवं देवियों के लिए अर्चनीय तथा पर्यपासनीय हैं केवल अपनी परिवार-ऋद्धि-यह मेरा अन्तःपुर है, मैं इनका स्वामी हूँ-यों अपने वैभव तथा प्रभुत्व की सुखानुभूति कर सकता है, मैथुनसेवन नहीं करता । सब ग्रहों आदि की विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता नामक चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं । यों १७६ ग्रहों की इन्हीं नामों की अग्रमहिषियाँ हैं। सूत्र- ३५२-३५४ अङ्गारक, विकालक, लोहिताङ्ग, शनैश्चरस आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कणवित्तानक, कणसन्तानक, सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कुर्बुरक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ- | यों भावकेतु पर्यन्त ग्रहों का उच्चारण करना । उन सबकी अग्रमहिषियाँ उपर्युक्त नामों की हैं। सूत्र-३५५ भगवन् ! चन्द्र-विमान में देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? गौतम ! चन्द्र-विमान में देवों की स्थिति जघन्य-१/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट-पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है । सूर्य-विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट पाँचसौ वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है । ग्रह-विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक पल्योपम । देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक १/४ पल्योपम होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् ' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद Page 102
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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