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________________ आगम सूत्र १८, उपांगसूत्र ७, 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वक्षस्कार / सूत्र ज्योतिश्चक्र के अन्तर लोकान्त से ज्योतिश्चक्र के अन्तर भूतल से ज्योतिश्चक्र के अन्तर तथा छठा द्वार-नक्षत्र अपने चार क्षेत्र के भीतर, बाहर या ऊपर चलते हैं ? इस सम्बन्ध में वर्णन है । सूत्र - ३३५ ज्योतिष्क विमानों के संस्थान, ज्योतिष्क देवों की संख्या, चन्द्र आदि देवों के विमानों को करनेवाले देव, देवगति, देवऋद्धि, ताराओं के पारस्परिक अन्तर, चन्द्र आदि की अग्रमहिषियों, आभ्यन्तर परिषत् एवं देवियों के साथ भोग-सामर्थ्य, ज्योतिष्क देवों के आयुष्य तथा सोलहवाँ द्वार - ज्योतिष्क देवों के अल्पबहुत्व का वर्णन है । सूत्र - ३३६ भगवन् ! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र एवं सूर्य के अणु-हीन हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के समश्रेणीवर्ती तथा उपरितन प्रदेशवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि में उनसे न्यून हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । सूत्र - ३३७ - भगवन् ! ऐसा किस कारण से है ? गौतम ! पूर्व भव में उन ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों का तप आचरण, नियमानुपालन तथा ब्रह्मचर्य सेवन जैसा जैसा उच्च या अनुच्च होता है, तदनुरूप उनमें द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से हीनता या तुल्यता होती है। पूर्व भव में उन देवों का तप आचरण नियमानुपालन, ब्रह्मचर्य सेवन जैसे-जैसे उच्च या अनुच्च नहीं होता, तदनुसार उनमें द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से न ता होती है, न तुल्यता होती है । सूत्र - ३३८ भगवन् ! एक एक चन्द्र का महाग्रह परिवार, नक्षत्र परिवार तथा तारागण परिवार कितना कोड़ाकोड़ी है? गौतम ! प्रत्येक चन्द्र का परिवार ८८ महाग्रह है, २८ नक्षत्र है तथा ६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र ३३९ - भगवन्! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी पर ज्योतिश्चक्र- लोकान्त से अलोक से पूर्व १९९१ योजन के अन्तर पर स्थित है। अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊंचाई पर गति करता है । इसी प्रकार सूर्यविमान धरणीतल से ८०० योजन की ऊंचाई पर, चन्द्र विमान ८८० योजन की ऊंचाई पर तथा नक्षत्र -ग्रह-प्रकीर्ण तारे ९०० योजन की ऊंचाई पर गति करते हैं। ज्योति। श्चक्र के अधस्तनतल से सूर्यविमान १० योजन के अन्तर पर, ऊंचाई पर गति करता है। चन्द्र विमान ९० योजन के और प्रकीर्ण तारे ११० योजन के अन्तर पर ऊंचाई पर गति करते हैं सूर्य के विमान से चन्द्रमा का विमान ८० योजन के अन्तर पर, ऊंचाई पर गति करता है । तारारूप ज्योतिश्चक्र १०० योजन के अन्तर पर, ऊंचाई पर गति करता है । वह चन्द्रविमान से २० योजन दूरी पर, ऊंचाई पर गति करता है । सूत्र - ३४० भगवन् ! जम्बूद्वीप में अठ्ठाईस नक्षत्रों में कौन सा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर, कौन सा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर, कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे और कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर-मण्डल में से, मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर, भरणी नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे तथा स्वाति नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है। भगवन् ! चन्द्रविमान का संस्थान कैसा है ? गौतम ! ऊपर की ओर मुँह कर रखे हुए आधे कपित्थ के फल के आकार का है। वह संपूर्णतः स्फटिकमय है। अति उन्नत है। सूर्य आदि सर्व ज्योतिष्क देवों के विमान मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद' Page 100
SR No.034685
Book TitleAgam 18 Jambudwippragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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