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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र विमान के विषय में भी यहीं समझना, ग्रह विमान को ८००० देव वहन करते हैं-पूर्व से उत्तर तक दो-दो हजार, पूर्ववत् रूप से; नक्षत्र विमान को ४००० देव वहन करते हैं-पूर्व से उत्तर तक एक-एक हजार, पूर्ववत् रूप से । सूत्र-१२४ ज्योतिष्क देवों की गति का अल्पबहुत्व-चंद्र से सूर्य शीघ्रगति होता है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होते हैं सर्व मंदगति चंद्र है और सर्व शीघ्रगति तारा है । तारारूप से नक्षत्र महर्द्धिक होते हैं; नक्षत्र से ग्रह, ग्रह से सूर्य और सूर्य से चंद्र महर्द्धिक हैं । सर्व अल्पर्द्धिक तारा है और सबसे महर्द्धिक चंद्र होते हैं। सूत्र - १२५ इस जंबूद्वीप में तारा से तारा का अन्तर दो प्रकार का है-व्याघात युक्त अन्तर जघन्य से २६६ योजन और उत्कृष्ट से १२२४२ योजन है; निर्व्याघात से यह अन्तर जघन्य से ५०० धनुष और उत्कृष्ट से अर्धयोजन है। सूत्र - १२६ ज्योतिष्केन्द्र चंद्र की चार अग्रमहिषीयाँ हैं-चंद्रप्रभा, ज्योत्सनाभा, अर्चिमालिनी एवं प्रभंकरा; एक एक पट्टराणी का चार-चार हजार देवी का परिवार है, वह एक-एक देवी अपने अपने चार हजार रूपों की विकुर्वणा करती हैं इस तरह १६००० देवियों की एक त्रुटीक होती है । वह चंद्र चंद्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में उन देवियों के साथ भोग भोगते हुए विचरण नहीं कर सकता, क्योंकि सुधर्मासभा में माणवक चैत्यस्तम्भ में वज्रमय शिके में गोलाकार डीब्बे में बहुत से जिनसक्थी होते हैं, वह ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चंद्र एवं उनके बहुत से देव-देवियों के लिए अर्चनीय, पूजनीय, वंदनीय, सत्कारणीय, सम्माननीय, कल्याण-मंगल-दैवत-चैत्यभूत और पर्दूपा-सनीय है। ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चंद्र चंद्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में ४००० सामानिक देव, सपरिवार चार अग्रमहिषीयाँ, तीन पर्षदा, सात सेना, सात सेनाधिपति, १६००० आत्मरक्षक देव एवं अन्य भी बहुत से देव-देवीओं के साथ महत् नाट्य-गीत-वाजिंत्र-तंत्री-तल-ताल-तुडित धन मृदंग के ध्वनि से युक्त होकर दिव्य भोग भोगते हुए विचरण करता है, मैथुन नहीं करता है। ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष राज सूर्य की चार अग्रमहिषीयाँ है-सूरप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा, शेष कथन चंद्र के समान है। सूत्र - १२७ ज्योतिष्क देवों की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवा भाग, उत्कृष्ट से एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है । ज्योतिष्क देवी की जघन्य स्थिति वहीं है, उत्कृष्ट ५०००० वर्षासाधिक अर्ध पल्योपम है | चंद्रविमान देव की जघन्य स्थिति एक पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। चंद्रविमान देवी की जघन्य स्थिति औधिक के समान है । सूर्य विमान के देवों की स्थिति चंद्र देवों के समान है, सूर्यविमान के देवी की जघन्य स्थिति औधिक के समान और उत्कृष्ट स्थिति ५०० वर्ष अधिक अर्धपल्योपम है। ग्रहविमान के देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट पल्योपम की है; ग्रहविमान के देवी की जघन्य वही है, उत्कृष्ट अर्धपल्योपम की है । नक्षत्र विमान के देवों की स्थिति ग्रहविमान की देवी के समान है और नक्षत्र देवी की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवा भाग और उत्कृष्ट से पल्योपम का चौथा भाग है । ताराविमान के देवों की स्थिति नक्षत्र देवी के समान है और उनकी देवी की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवा भाग और उत्कृष्ट से साधिक पल्योपम का आठवा भाग प्रमाण है। सूत्र - १२८ ज्योतिष्क देवों का अल्पबहत्व-चंद्र और सूर्य दोनों तुल्य हैं और सबसे अल्प हैं, उनसे नक्षत्र संख्यातगुणे हैं, उनसे ग्रह संख्यात गुणे हैं, उनसे तारा संख्यात गुणे हैं। प्राभृत-१८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 43
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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