SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-१९ सूत्र-१२९ कितने चंद्र-सूर्य सर्वलोक को प्रकाशित-उद्योतीत तापीत और प्रभासीत करते हैं । इस विषय में बारह प्रतिपत्तियाँ हैं सर्वलोक को प्रकाशित यावत प्रभासीत करनेवाले चंद्र और सर्य-(१) एक-एक हैं, (२) ती त् प्रभासीत करनेवाले चंद्र और सूर्य-(१) एक-एक हैं, (२) तीन-तीन हैं, (३) साडेतीन-साडेतीन हैं, (४) सात-सात हैं, (५) दश-दश हैं, (६) बारह-बारह हैं, (७) ४२-४२ हैं, (८) ७२-७२ हैं, (९) १४२-१४२ हैं, (१०) १७२-१७१ हैं, (११) १०४२-१०४२ हैं, (१२) १०७२-१०७२ हैं। भगवंत फरमाते हैं कि इस जंबूद्वीप में दो चंद्र प्रभासीत होते थे-हुए हैं और होंगे । दो सूर्य तापीत करते थेकरते हैं और करेंगे। ५६ नक्षत्र योग करते थे-करते हैं और करेंगे। १७६ ग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे। १३३९५० कोडाकोड़ी तारागण शोभते थे-शोभते हैं और शोभित होंगे। सूत्र-१३०,१३१ जंबूद्वीप में भ्रमण करनेवाले दो चंद्र, दो सूर्य, छप्पन नक्षत्र और १७६ ग्रह हैं । तथा-१३३९५० कोडाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र-१३२,१३३ इस जंबूद्वीप को लवण नामक समुद्र घीरे हुए है, वृत्त एवं वलयाकार है, समचक्रवाल संस्थित है उसका चक्रवाल विष्कम्भ दो लाख योजन है, परिधि १५८११३९ योजन से किंचित् न्यून है । इस लवणसमुद्र में चार चंद्र प्रभासित हुए थे-होते हैं और होंगे, चार सूर्य तापित करते थे-करते हैं और करेंगे, ११२ नक्षत्र योग करते थे-करते हैं और करेंगे, ३५२ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे, २३७९०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे-होते हैं और होंगे । १५८११३९ योजन से किंचित् न्यून लवणसमुद्र का परिक्षेप है। सूत्र-१३४,१३५ लवणसमुद्र में चार चंद्र, चार सूर्य, ११२ नक्षत्र और ३५२ महाग्रह हैं । २६७९०० कोड़ाकोड़ी तारागण लवणसमुद्र में हैं। सूत्र-१३६ उस लवणसमुद्र को धातकीखण्ड नामक वृत्त-वलयाकार यावत् समचक्रवाल संस्थित द्वीप चारों और से घेर कर रहा हुआ है । यह धातकी खण्ड का चार लाख योजन चक्रवाल विष्कम्भ और ४११०९६१ परिधि है । धातकी खण्ड में बारह चंद्र प्रभासित होते थे-होते हैं और होंगे, बारह सूर्य इसको तापित करते थे-करते हैं और करेंगे, ३३६ नक्षत्र योग करते थे-करते हैं और करेंगे, १०५६ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे। सूत्र - १३७-१४० धातकी खण्ड में ८,३०,७०० कोड़ाकोड़ी तारागण एक चंद्र का परिवार है। धातकी खण्ड परिक्षेप से किंचित् न्यून ४११०९६१ योजन का है । १२-चंद्र, १२-सूर्य, ३३६ नक्षत्र एवं १०५६ नक्षत्र धातकीखण्ड में हैं। ८३०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण धातकीखण्ड में हैं। सूत्र-१४१-१४५ कालोद नामक समुद्र जो वत्त, वलयाकार एवं समचक्रविष्कम्भ वाला है वह चारों ओर से धातकीखण्ड को घीरे हुए रहा है । उसका चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख योजन और परिधि ९१७०६०५ योजन से किंचित् अधिक है। कालोद समुद्र में ४२ चंद्र प्रभासित होते थे-होते हैं और होंगे, ४२-सूर्य तापित करते थे-करते हैं और करेंगे, ११७६ नक्षत्रों ने योग किया था-करते हैं और करेंगे, ३६९६ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे, २८१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे-होते हैं और होंगे। कालोद समुद्र की परिधि साधिक ९१७०६०५ योजन है । कालोद समुद्र में ४२-चंद्र, ४२-सूर्य दिप्त हैं, वह मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 44
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy