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________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-१८ सूत्र-११७ हे भगवन् ! इन ज्योतिष्कों की ऊंचाई किस प्रकार कही है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं-एक कहता है-भूमि से ऊपर एक हजार योजन में सूर्य स्थित है, चंद्र १५०० योजन ऊर्ध्वस्थित है । दूसरा कहता है कि-सूर्य २००० योजन ऊर्ध्वस्थित है, चंद्र २५०० योजन ऊर्ध्वस्थित है । इसी तरह दूसरे मतवादीयों का कथन भी समझ लेना-सभी -एक हजार योजन की वद्धि कर लेना यावत पच्चीसवाँ मतवादी कहता है कि-भूमि से सर्य २५००० योजन ऊर्ध्वस्थित है और चंद्र २५५०० योजन ऊर्ध्वस्थित है। भगवंत इस विषय में फरमाते हैं कि इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम भूमि भाग से ऊंचे ७९० योजन पर तारा विमान, ८०० योजन पर सूर्यविमान, ८८० योजन ऊंचे चंद्रविमान, ९०० योजन पर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करते हैं। सर्वाधस्तन तारा विमान से ऊपर ११० योजन जाकर सर्वोपरी ताराविमान भ्रमण करता है, सूर्य विमान से ८० योजन ऊंचाई पर चंद्रविमान भ्रमण करता है, इसका पूर्व-पश्चिम व्यास विस्तार ११० योजन भ्रमण क्षेत्र है, तिर्छा असंख्यात योजन का भ्रमणक्षेत्र है। सूत्र - ११८ हे भगवन् ! चंद्र-सूर्य देवों के अधोभाग या ऊर्श्वभाग के तारारूप देव लघु या तुल्य होते हैं ? वे तारारूप देवों का जिस प्रकार का तप-नियम-ब्रह्मचर्य आदि पूर्वभव में होते हैं, उस-उस प्रकार से वे ताराविमान के देव लघु अथवा तुल्य होते हैं । चंद्र-सूर्यदेवों के अधोभाग या ऊर्ध्वभाग स्थित तारा देवों के विषय में भी इसी प्रकार से लघुत्व या तुल्यत्व समझ लेना। सूत्र - ११९,१२० एक-एक चंद्ररूप देवों का ग्रह-नक्षत्र एवं तारारूप परिवार कितना है ? एक-एक चंद्र देव का ग्रह परिवार ८८ का और नक्षत्र परिवार-२८ का होता है। एक-एक चंद्र का तारारूप परिवार ६६९०५ है। सूत्र-१२१ मेरु पर्वत की चारों तरफ ११२१ योजन को छोडकर ज्योतिष्क देव भ्रमण करते हैं, लोकान्त से ज्योतिष्क देव का परिभ्रमण ११११ योजन है। सूत्र-१२२ जंबूद्वीप के मंडल में नक्षत्र के सम्बन्ध में प्रश्न-अभिजीत नक्षत्र जंबूद्वीप के सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है, मूल नक्षत्र सर्वबाह्य मंडल में, स्वाति नक्षत्र सर्वोपरी मंडल में और भरणी नक्षत्र सर्वाधस्तन मंडल में गमन करते हैं। सूत्र-१२३ चंद्रविमान किस प्रकार के संस्थान वाला है ? अर्धकपिट्ठ संस्थान वाला है, वातोद्भुत धजावाला, विविध मणिरत्नों से आश्चर्यकारी, यावत् प्रतिरूप है, इसी प्रकार सूर्य यावत् ताराविमान का वर्णन समझना । वह चंद्र विमान आयामविष्कम्भ से छप्पन योजन एवं एकसठांश भाग प्रमाण है, व्यास को तीन गुना करने से इसकी परिधि होती है और बाहल्य अट्ठाईस योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण है, सूर्य विमान का आयामविष्कम्भ अडतालीश योजन एवं एकसठांश योजन भाग प्रमाण, परिधि आयामविष्कम्भ से तीन गुनी, बाहल्य से चौबीस योजन एवं एक योजन के एकसठांश भाग प्रमाण है । नक्षत्र विमान का आयाम विष्कम्भ एक कोस, परिधि उससे तीन गुनी और बाहल्य देढ़ कोस प्रमाण है । तारा विमान का आयामविष्कम्भ अर्धकोस, परिधि उनसे तीन गुनी और बाहल्य ५०० धनुष प्रमाण है। चंद्र विमान को १६००० देव वहन करते हैं, यथा-पूर्व दिशा में सिंह रूपधारी ४००० देव, दक्षिण में गजरूपधारी ४००० देव, पश्चिम में वृषभरूपधारी ४००० देव और उत्तर में अश्वरूपधारी ४००० देव वहन करते हैं । सूर्य मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 42
SR No.034683
Book TitleAgam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 16, & agam_suryapragnapti
File Size2 MB
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