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आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति'
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प्राभृत-१५ सूत्र-१११
हे भगवन् ! इन ज्योतिष्कों में शीघ्रगति कौन है ? चंद्र से सूर्य शीघ्रगति है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होते हैं। सबसे अल्पगतिक चंद्र है और सबसे शीघ्रगति ताराएं है। एक-एक मुहूर्त में गमन करता हुआ चंद्र, उन-उन मंडल सम्बन्धी परिधि के १७६८ भाग गमन करता हुआ मंडल के १०९८०० भाग कर गमन करता है । एक मुहूर्त में सूर्य उन-उन मंडल की परिधि के १८३० भागों में गमन करता हुआ उन मंडल के १०९८०० भाग छेद करके गति करता है । नक्षत्र १८३५ भाग करते हुए मंडल के १०९८०० भाग छेद करके गति करता है। सूत्र - ११२
जब चंद्र गति समापन्नक होता है, तब सूर्य भी गति समापन्नक होता है, उस समय सूर्य बासठ भाग अधिकता से गति करता है । इसी प्रकार से चंद्र से नक्षत्र की गति सडसठ भाग अधिक होती है, सूर्य से नक्षत्र की गति पाँच भाग अधिक होती है । जब चंद्र गति समापन्नक होता है उस समय अभिजीत नक्षत्र जब गति करता है तो पूर्व दिशा से चन्द्र को नव मुहूर्त एवं दशवे मुहूर्त के सत्ताईस सडसट्ठांश भाग मुहूर्त से योग करता है, फिर योग परिवर्तन करके उसको छोड़ता है । उसके बाद श्रवण नक्षत्र तीस मुहूर्त पर्यन्त चंद्र से योग करके अनुपरिवर्तित होता है, इस प्रकार इसी अभिलाप से पन्द्रह मुहूर्त्त-तीस मुहूर्त-पीस्तालीश मुहूर्त को समझ लेना यावत् उत्तराषाढ़ा
जब चंद्र गति समापन्न होता है तब ग्रह भी गति समापन्नक होकर पूर्व दिशा से यथा सम्भव चंद्र से योग करके अनुपरिवर्तित होते हैं यावत् जोग रहित होते हैं । इसी प्रकार सूर्य के साथ पूर्व दिशा से अभिजीत नक्षत्र योग करके चार अहोरात्र एवं छह मुहूर्त साथ रहकर अनुपरिवर्तीत होता है, इसी प्रकार छ अहोरात्र एवं इक्कीस मुहूर्त, तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त, बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त को समझ लेना यावत् उत्तराषाढ़ा नक्षत्र सूर्य के साथ बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त तक योग करके अनुपरिवर्तित होता है । सूर्य का ग्रह के साथ योग चंद्र के समान समझ लेना । सूत्र- ११३
___नक्षत्र मास में चंद्र कितने मंडल में गति करता है ? वह तेरह मंडल एवं चौदहवे मंडल में चवालीस सड-सट्ठांश भाग पर्यन्त गति करता है, सूर्य तेरह मंडल और चौदहवें मंडल में छयालीस सडसठांश भाग पर्यन्त गति करता है, नक्षत्र तेरह मंडल एवं चौदह मंडल के अर्द्ध सडतालीश षडषठांश भाग पर्यन्त गति करता है ।चन्द्र मास में इन सब की मंडलगति इस प्रकार है-चंद्र की सवा चौदह मंडल, सूर्य की पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की चतुर्भाग न्यून पन्द्रह मंडल।
ऋतु मासे में इन सबकी मंडल गति-चंद्र की चौदह मंडल एवं पन्द्रहवे मंडल में ३०/६१ भाग, सूर्य की पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की पन्द्रह मंडल एवं सोलहवे मंडल में ५/१२२ भाग है । आदित्य मास में इन की मंडलगति-चन्द्र की चौदह मंडल एवं पन्द्रहवें मंडल में ११/१५, सूर्य की सवा पन्द्रह मंडल और नक्षत्र की पन्द्रह मंडल एवं सोलहवे मंडल का ३५/१२० भाग है । अभिवर्धित मास में इनकी गति-चंद्र की पन्द्रह मंडल एवं सोलहवे मंडल में ८३/१८६ अंश, सूर्य की त्रिभागन्यून सोलहवे मंडल में और नक्षत्रों की सोलह मंडल एवं सत्रह मंडल में ४७/१४८८ अंश होती है सूत्र-११४
हे भगवन् ! एक-एक अहोरात्र में चंद्र कितने मंडलों में गमन करता है ? ९१५ से अर्धमंडल को विभक्त करके इकतीस भाग न्यून ऐसे मंडल में गति करता है, सूर्य एक अर्द्ध मंडल में गति करता है और नक्षत्र एक अर्द्ध-मंडल एवं अर्द्धमंडल को ७३२ से छेदकर-दो भाग अधिक मंडल में गति करता है । एक-एक मंडल में चंद्र दो अहोरात्र एवं एक अहोरात्र को ४४२ से छेद करके इकतीस भाग अधिक से गमन करता है, सूर्य दो अहोरात्र से और नक्षत्र दो अहोरात्र एवं एक अहोरात्र को ३६७ से छेद करके-दो भाग न्यून से गमन करता है । एक युग में चंद्र ८८४ मंडलों में, सूर्य ९१५ मंडल में और नक्षत्र १८३५ अर्धमंडलों में गति करता है । इस तरह गति का वर्णन हुआ।
प्राभृत-१५-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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