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आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र
प्राभृत-३ सूत्र - ३४
चंद्र-सूर्य कितने क्षेत्र को अवभासित-उद्योतित-तापित एवं प्रकाशीत करता है ? इस विषय में बारह प्रतिपत्तियाँ हैं । वह इस प्रकार-(१) गमन करते हुए चंद्र-सूर्य एक द्वीप और एक समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशित करते हैं । (२) तीन द्वीप-तीन समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते हैं । (३) अर्द्ध चतुर्थद्वीप-अर्द्ध चतुर्थ समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (४) सात द्वीप - सात समुद्रों को अवभासित आदि करते हैं । (५) दश द्वीप और दश समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (६) बारह द्वीप-बारह समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (७) बयालीस द्वीप-बयालीस समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (८) बहत्तर द्वीप बहत्तर समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (९) १४२-१४२ द्वीप-समुद्रों को अवभासित आदि करते हैं । (१०) १७२-१७२ द्वीप-समुद्रों को अवभासित आदि करते हैं । (११) १०४२-१०४२ द्वीप समुद्र को अवभासित आदि करते हैं । (१२) चंद्र-सूर्य १०७२ - १०७२ द्वीप-समुद्रों को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते हैं।
भगवंत फरमाते हैं कि यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप-समुद्रों से घीरा हुआ है । एक जगति से चारों तरफ से परिक्षिप्त हैं । इत्यादिकथन ''जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रानुसार यावत् १५६००० नदियों से युक्त है, यहाँ तक कहना । यह जंबूद्वीप पाँच चक्र भागों से संस्थित है । हे भगवन् ! जंबूद्वीप पाँच चक्र भागों से किस प्रकार संस्थित है ? जब दोनों सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करते हैं, तब जंबूद्वीप के तीनपंचमांश चक्र भागों को अव-भासित यावत् प्रकाशित करते हैं, एक सूर्य द्वयर्द्ध पंच चक्रवाल भाग को और दूसरा अन्य द्वयर्द्ध चक्रवाल भाग को अवभासीत यावत् प्रकाशित करता है । उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त अट्ठारह उत्कृष्ट मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब दोनों सूर्य सर्वबाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गति करते हैं, तब जंबूद्वीप के दो चक्रवाल भाग को अवभासित यावत् प्रकाशित करते हैं, अर्थात् एक सूर्य एक पंचम भाग को और दूसरा सूर्य दूसरे एकपंचम चक्रवाल भाग को अवभासित यावत् प्रकाशित करता है, उस समय उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है।
प्राभृत-३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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