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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र अचारित्री और चारित्राचारित्री भी हैं; वेद परिणाम से वे स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक और नपुंसक-वेदक भी होते हैं।
मनुष्य, गतिपरिणाम से मनुष्यगतिक हैं; इन्द्रियपरिणाम से पंचेन्द्रिय होते हैं, अनिन्द्रिय भी; कषायपरिणाम से क्रोधकषायी, यावत् अकषायी भी होते हैं; लेश्यापरिणाम से कृष्णलेश्या यावत् अलेश्यी भी हैं; योगपरिणाम से मनोयोगी यावत् अयोगी भी हैं; उपयोगपरिणाम से नैरयिकों के समान हैं; ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिकज्ञानी से यावत् केवलज्ञानी तक भी होते हैं; अज्ञानपरिणाम से तीनों ही अज्ञानवाले हैं, दर्शनपरिणाम से तीनों ही दर्शन हैं; चारित्रपरिणाम से चारित्री, अचारित्री और चारित्राचारित्री भी होते हैं; वेदपरिणाम से (ये) स्त्रीवेदक यावत् अवेदक भी होते हैं । वाणव्यन्तर देव गतिपरिणाम से देवगतिक हैं, शेष असुरकुमारों की तरह समझना । इसी प्रकार ज्योतिष्कों के समस्त परिणामों में भी समझना । विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से (वे सिर्फ) तेजोलेश्या वाले होते हैं। वैमानिकों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि वे तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या वाले भी होते हैं। सूत्र - ४०८
भगवन् ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम! दस प्रकार का-बन्धनपरिणाम, गतिपरिणाम, संस्थान परिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुपरिणाम और शब्दपरिणाम सूत्र-४०९
___ भगवन् ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का-स्निग्धबन्धनपरिणाम और रूक्षबन्धनपरिणाम । सूत्र-४१०
समस्निग्धता और समरूक्षता होने से बन्ध नहीं होता । विमात्रा वाले स्निग्धत्व और रूक्षत्व के होने पर स्कन्धों का बन्ध होता है। सूत्र-४११
दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध का तथा दो गुण अधिक रूक्ष के साथ रूक्ष का एवं स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्ध होता है; किन्तु जघन्यगुण को छोड़कर, चाहे वह सम हो अथवा विषम हो । सूत्र -४१२
भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का-स्पृशद्गतिपरिणाम और अस्पृशद्गतिपरिणाम, अथवा दीर्घगतिपरिणा और ह्रस्वगतिपरिणाम | संस्थानपरिणाम पाँच प्रकार का है-परिमण्डलसंस्थान-परिणाम, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम | भेदपरिणाम पाँच प्रकार का है-खण्डभेदपरिणाम, यावत् उत्कटिका भेदपरिणाम | वर्णपरिणाम पाँच प्रकार का है-कृष्णवर्णपरिणाम, यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम | गन्धपरिणाम दो प्रकार का हैसुगन्धपरिणाम और दुर्गन्धपरिणाम । रसपरिणाम पाँच प्रकार का है-तिक्तरसपरिणाम, यावत् मधुर-रसपरिणाम | स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का है-कर्कश स्पर्शपरिणाम, यावत् रूक्षस्पर्शपरिणाम । अगुरुलघुपरिणाम एक ही प्रकार का है। शब्दपरिणाम दो प्रकार का है-सुरभि शब्दपरिणाम और दुरभि शब्दपरिणाम ।
पद-१३-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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