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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-१३-परिणाम सूत्र-४०५
भगवन ! परिणाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं-जीव-परिणाम और अजीव-परिणाम । सूत्र-४०६
भगवन् ! जीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दस प्रकार का-गतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, योगपरिणाम, उपयोगपरिणाम, ज्ञानपरिणाम, दर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम और वेदपरिणाम ।
सूत्र-४०७
भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का-निरयगतिपरिणाम, तिर्यग्गति-परिणाम, मनुष्यगतिपरिणाम और देवगतिपरिणाम । इन्द्रियपरिणाम पाँच प्रकार का है-श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम, चक्षुरिन्द्रियपरिणाम, घ्राणेन्द्रियपरिणाम, जिह्वेन्द्रियपरिणाम और स्पर्शेन्द्रियपरिणाम | कषायपरिणाम चार प्रकार का हैक्रोधकषायपरिणाम, मानकषायपरिणाम, मायाकषायपरिणाम और लोभकषायपरिणाम । लेश्यापरिणाम छह प्रकार का है-कृष्णलेश्यापरिणाम, नीललेश्यापरिणाम, कापोतलेश्यापरिणाम, तेजोलश्यापरिणाम, पद्मलेश्या-परिणाम और शुक्ललेश्यापरिणाम । योगपरिणाम तीन प्रकार का है-मनोयोगपरिणाम, वचनयोगपरिणाम और काययोगपरिणाम । उपयोगपरिणाम दो प्रकार का है-साकारोपयोगपरिणाम और अनाकारोपयोगपरिणाम ।
ज्ञान-परिणाम पाँच प्रकार का है-आभिनिबोधिकज्ञानपरिणाम, श्रुतज्ञानपरिणाम, अवधिज्ञानपरिणाम, मनःपर्यवज्ञान-परिणाम, केवलज्ञानपरिणाम। अज्ञानपरिणाम तीन प्रकार का-मति-अज्ञानपरिणाम, श्रुतअज्ञानपरिणाम और विभंगज्ञानपीरणाम । भगवन् ! दर्शनपरिणाम ? तीन प्रकार का है-सम्यग्दर्शनपरिणाम, मिथ्यादर्शनपरिणाम और सम्यग्मिथ्यादर्शनपरिणाम । चारित्रपरिणाम पाँच प्रकार का है-सामायिकचारित्रपरिणाम, छेदोपस्थापनीयचारित्रपरिणाम, परिहारविशुद्धिचारित्रपरिणाम, सूक्ष्मसम्परायचारित्रपरिणाम और यथाख्यातचारित्रपरिणाम | वेदपरिणाम तीन प्रकार का है-स्त्रीवेदपरिणाम, पुरुषवेदपरिणाम और नपुंसकवेदपरिणाम ।
नैरयिक जीव गतिपरिणाम से नरकगतिक, इन्द्रियपरिणाम से पंचेन्द्रिय, कषायपरिणाम से क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, लेश्यापरिणाम से कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावान हैं; योगपरिणाम से वे मनोयोगी, वचन योगी और काययोगी हैं; उपयोगपरिणाम से साकारोपयोग और अनाकारोपयोग वाले हैं; ज्ञानपरिणाम से आभिनि-बोधिक, श्रुत और अवधिज्ञानी हैं; अज्ञानपरिणाम से मति, श्रुत और विभंगज्ञानी भी हैं; दर्शनपरिणाम से वे सम्यग-दृष्टि, मिथ्यादृष्टि हैं और सम्यमिथ्यादृष्टि भी हैं; चारित्रपरिणाम से अचारित्री हैं; वेदपरिणाम से नपुंसकवेदी हैं । असुरकुमारों को भी इसी प्रकार जानना । विशेषता यह कि वे देवगतिक हैं; कृष्ण तथा नील, कापोत एवं तेजो-लेश्यावाले भी होते हैं; वे स्त्रीवेदक और पुरुषवेदक भी हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना ।
___ पृथ्वीकायिकजीव गतिपरिणाम से तिर्यंचगतिक हैं, इन्द्रियपरिणाम से एकेन्द्रिय हैं, शेष, नैरयिकों के समान समझना । विशेषता यह कि लेश्यापरिणाम से (ये) तेजोलेश्यावाले भी होते हैं । योगपरिणाम से काययोगी होते हैं, इनमें ज्ञानपरिणाम नहीं होता । अज्ञानपरिणाम से ये मति और श्रुत-अज्ञानी हैं; दर्शनपरिणाम से मिथ्यादृष्टि हैं, इसी प्रकार अप्कायिक एवं वनस्पतिकायिकों को (समझना ।) तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों इसी प्रकार है । विशेष यह है कि लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा नैरयिकों के समान कहना । द्वीन्द्रियजीव गतिपरिणाम से तिर्यंचगतिक हैं, इन्द्रिय परिणाम से द्वीन्द्रिय हैं। शेष नैरयिकों की तरह समझना । विशेषता यह कि (वे) वचनयोगी भी होते हैं, काययोगी भी, ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिक ज्ञानी भी होते हैं और श्रुतज्ञानी भी; अज्ञानपरिणाम से मतिअज्ञानी भी होते हैं और श्रुत-अज्ञानी भी; दर्शनपरिणाम से सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी; इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक समझना । विशेष यह कि इन्द्रिय की वृद्धि कर लेना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव गतिपरिणाम से तिर्यंचगतिक हैं। शेष नैरयिकों के समान है । विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से यावत् शुक्ललेश्यावाले भी होते हैं; चारित्रपरिणाम से वे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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