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आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना'
पद/उद्देश /सूत्र पद-१४-कषाय सूत्र-४१३
भगवन् ! कषाय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय । भगवन् ! नैरयिक जीवों में कितने कषाय होते हैं ? गौतम ! चार-क्रोधकषाय यावत् लोभकषाय । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना । सूत्र-४१४
__ भगवन् ! क्रोध कितनों पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! चार स्थानों पर-आत्मप्रतिष्ठित, परप्रतिष्ठित, उभय-प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । क्रोध की तरह मान, माया और लोभ में भी एकएक दण्डक कहना।
भगवन् ! कितने स्थानों से क्रोध की उत्पत्ति होती है ? चार-क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार मान, माया और लोभ में भी कहना । इसी प्रकार ये चार दण्डक होते
सूत्र-४१५
भगवन् ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का अनन्तानुबन्धी क्रोध, अप्रत्याख्यान क्रोध, प्रत्याख्यानावरण क्रोध और संज्वलन क्रोध । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार मान से, माया से और लोभ की अपेक्षा से भी चार दण्डक होते हैं। सूत्र-४१६
भगवन् ! क्रोध कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का आभोगनिवर्तित, अनाभोगनिवर्तित, उप-शान्त और अनुपशान्त । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । क्रोध के समान ही मान, माया और लोभ के विषय में जानना सूत्र-४१७
भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय किया ? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा के विषय में तीनों प्रश्न समझना । सूत्र-४१८
आत्मप्रतिष्ठित, क्षेत्र की अपेक्षा से, अनन्तानुबन्धी, आभोग, अष्ट कर्मप्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा यह पद सहित सूत्र कथन हुआ।
पद-१४-का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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